- श्रद्धालुओं ने अस्ताचलगामी सूर्य को दिया अर्घ्य, लगाई आस्था की डुबकी
- -पूर्वांचल के श्रद्धालुओं ने दिया अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
-व्रती महिलाओं ने शुरू किया 36 घंटे का निर्जला उपवास
रणबीर रोहिल्ला, सोनीपत। छठ महापर्व के तीसरे दिन बुधवार को रोहट नहर पर पूर्वांचल के श्रद्धालुओं ने भगवान भास्कर को सायंकालीन अर्घ्य देकर छठ मैया की पूजा की। छठ पूजा को लेकर रोहट नहर पर बनाया गए घाट को बहुत ही सुन्दर तरीके से केले के पेड़ व अन्य सजावट के साजो सामान से सजाया गया था। पूर्वांचल से आकर सोनीपत में अपने परिवार के साथ रह रहे सुनील ने बताया कि लोक आस्था के महापर्व छठ की अपनी विशेषता है। छठ मैया को लेकर लोगों में अलग ही उत्साह व भक्ति का माहौल देखा जा सकता है।
पूर्वांचल का हर व्यक्ति इस त्योहार में शामिल होता हैं। घाट पर चलते हुए पानी के अन्दर खड़े होकर सभी लोग एक साथ पूजा करते हैं। छठ व्रतियों ने भगवान भास्कर को गुड़ खीर व घी मिश्रित रोटी का भोग लगाकर खरना संपन्न किया और इसके साथ ही उनका 36 घंटे का निर्जला व निराहार व्रत शुरू हुआ। सूर्योपासना के महापर्व अनुष्ठान के तीसरे दिन बुधवार को अस्ताचलसगामी सूर्य को श्रद्धालुओं ने अर्घ्य प्रदान किया। वीरवार को श्रद्धालु उदीयमान सूर्य को अर्घ्य प्रदान करके इस महापर्व के अनुष्ठान का समापन करेंगे। धार्मिक मान्यता है कि छठ महापर्व में नहाए-खाए से पारण तक व्रतियों पर षष्ठी माता की कृपा बरसती है। गौरतलब है कि बिहार और पूर्वी उत्तरप्रदेश में छठ पूरी श्रद्धा और भक्ति से मनायी जाती है। बुधवार शाम व्रतियों ने पूरी भक्ति के साथ भगवान भास्कर को गुड़ -दूध की खीर, घी में बनी रोटी का भोग लगाया और खुद भी परिजनों के साथ प्रसाद ग्रहण किया।
नहाय खाय से शुरू हुई छठ पूजा के तीसरे दिन बुधवार को श्रद्धालुओं ने छठ घाटों में आस्था की डुबकी लगाते हुए अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दिया। प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य को पहला अर्घ्य देने के लिए छठ व्रतियों व उनके परिजन उत्साहपूर्वक घाटों पर पहुंचे। जैसे ही सूर्यास्त होने लगा तो छठ व्रती पानी में खड़े होकर भगवान सूर्य की आराधना करने लगी। उसके बाद डूबते सूर्य को छठ व्रतियों ने अपने परिजनों के साथ जल और दूध का अर्घ्य अर्पित किया। बृहस्पतिवार सुबह उदीयमान सूर्य को अर्घ्य देकर व्रत का पारण किया जाएगा। छठ पर्व लोक आस्था का एक प्रमुख पर्व है। इस पर्व में आत्मिक शुद्धि और निर्मल मन से अस्ताचलगामी और उदीयमान भगवान सूर्य की उपासना की जाती है।
सामाजिक समरसता का प्रतीक यह अलौकिक अनुष्ठान मनुष्य को प्रकृति से जोड़ता है। पूर्वांचलवासी अपने घर से दूर आकर भी अपनी संस्कृति व धार्मिक परंपरा को नहीं भूले हैं। वे एकजुटता व भाईचारे की भावना के साथ इस पर्व को मनाकर समाज में सौहार्द का वातावरण कायम रखने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सूर्य की कठिन साधना एवं तपस्या से जुड़ा व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक है। इसमें महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि की कामना लिए 36 घंटों का निर्जला व्रत रखती हैं और सर्दी के समय ठंडे पानी में खड़े होकर विधि-विधान से प्रत्यक्ष देवता भगवान सूर्य और छठी मैया की पूजा पूरे श्रद्धा एवं भाव के साथ करती हैं।
यहां बता दें कि छठ महापर्व के दूसरे दिन मंगलवार को खरना पूजन का आयोजन किया गया। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के साथ ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास भी शुरू हो गया। जिले के विभिन्न हिस्सों में रहने वाले पूर्वांचल के श्रद्धालु बुधवार को भगवान भास्कर को सायंकालीन अर्घ्य दिया व 11 नवंबर वीरवार की सुबह उगते सूर्य देवता को प्रात:कालील अर्घ्य देंगे। छठ पूजा के मद्देनजर श्रद्धालुओं ने बाजारों में पूजन सामग्री व फलों की जमकर खरीददारी की। दरअसल खरना का मतलब होता है शुद्धिकरण। खरना के दिन छठ पूजा का विशेष प्रसाद बनाने की परंपरा है। व्रतियों ने शाम के समय साठी के चावल और गुड़ की खीर बनाकर प्रसाद तैयार किया। इसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करने के बाद व्रती महिलाओं ने इस प्रसाद को ग्रहण किया। इस प्रसाद को ग्रहण करने के बाद ही व्रती महिलाओं का 36 घंटे का निर्जला उपवास शुरू गया। मान्यता है कि खरना पूजा के बाद ही घर में देवी षष्ठी (छठी मइया) का आगमन हो जाता है।