भिवानी( राजेश सलूजा)। देश के एक राजनीतिक दल से कितनी आशा की जानी चाहिए? एक राजनीतिक दल संकट के दौर में देश और देश की जनता के लिए कितनी अहम भूमिका निभाता है? इन सवालों के जवाब तलाशने पर पता चलता है कि जनता हर राजनीतिक दल का चुनाव करने से पहले उन्हें भरपूर आज़माती है। ऐसा ही एक जांचा और परखा गया राजनीतिक दल है जनसंघ। जिसकी पहचान आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी के रूप में होती है। वही राजनीतिक दल जिसकी पहचान किसी ज़माने में ‘दिया और बाती’ चिन्ह से होती थी। उक्त शब्द भाजपा नेता रीतिक वधवा ने जनसंघ के स्थापना दिवस के अवसर पर संस्थापक सदस्य पं दीनदयाल उपाध्याय एवं अटल बिहारी वाजपेयी के चित्र पर पुष्प अर्पित कर नमन करते हुए कहे।
उन्होंने कहा कि साल 1951 में आज ही के दिन, यानी 21 अक्टूबर को जनसंघ की स्थापना हुई थी। जनसंघ का राजनीतिक इतिहास हो या युद्ध के दौरान निभाई गई महत्वपूर्ण भूमिका, नेताओं से लेकर कार्यकर्ता तक सभी ने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी भरपूर निभाई। उन्होंने कहा कि 1951 में स्थापना के बाद जनसंघ के सामने कई तरह की चुनौतियां थीं, जिसमें सबसे बड़ी चुनौती थी साल 1952 में होने वाले पहले लोकसभा चुनाव। ऐसा दौर जब देश में केवल 4 राष्ट्रीय राजनीतिक दल थे, देश के पहले चुनाव हुए और जनसंघ को 3 सीटें हासिल हुई।
एक बात सुनिश्चित हुई कि देश में एक ऐसा राजनीतिक दल है जिसकी प्रस्तावना राष्ट्रवाद है। 1957 में देश के दूसरे लोकसभा चुनाव हुए और नतीजे आने पर दो विशेष बातें हुई, पहला जनसंघ को पिछली बार से 1 सीट ज्यादा हासिल हुई और स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार सांसद चुने गए। तीसरे और चौथे लोकसभा चुनावों में जनसंघ का प्रदर्शन अप्रत्याशित था, 1962 के लोकसभा चुनावों में जनसंघ को 14 सीट हासिल हुई और 1967 के चुनावों में 35 सीटें। इसके बाद जनसंघ को हासिल होने वाले परिणामों की सूरत बेहतर ही हुई, 1971 में हुए पांचवें लोकसभा चुनावों में जनसंघ को 22 सीट मिली। फिर आया आपातकाल का दौर। आपातकाल के बाद 1977 में हुए छठे लोकसभा चुनावों में जनसंघ ने जनता पार्टी के साथ मिल कर चुनाव लड़ा। जनता पार्टी को कुल 295 सीट हासिल हुई और ‘कांग्रेस’ को करारी हार का सामना करना पड़ा। 30 महीने की इस सरकार के बाद 1980 में सातवें लोकसभा चुनाव हुए और इसमें जनसंघ को 35 सीटें हासिल हुई और साथ चुनाव लड़ रही जनता पार्टी को 31 सीट।
उन्होंने कहा कि जनसंघ देश का पहला राजनीतिक दल था, जिसने ज़मींदारी और जागीरदारी का विरोध किया। जनसंघ ने ही जम्मू कश्मीर के मुद्दे पर तत्कालीन सरकार के रवैये का खुल कर विरोध किया।1962 में जब चीन ने भारत पर हमला किया तब जनसंघ और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं ने सिविक और पुलिस ड्यूटी का किरदार निभाया। यही वजह थी कि तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साल 1963 के दौरान हुई गणतंत्र दिवस की परेड में इन कार्यकर्ताओं को मार्च करने के लिए बुलाया। 1965 के दौरान लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में भारत-पाकिस्तान के युद्ध में एक बार फिर जनसंघ और आरएसएस के कार्यकर्ताओं ने वही भूमिका निभाई।
इस बार कार्यकर्ताओं ने सैन्य मार्गों की सुरक्षा तक की और यह सिलसिला 1971 के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार में हुए युद्ध तक जारी रहा। उन्होंने कहा कि जनसंघ के सामने विसंगतियां भी कभी कम नहीं रही और चुनौतियों का यह सिलसिला देश की स्वतंत्रता के बाद से ही शुरू हो गया था। तमाम राजनीतिक दलों और विचारधाराओं के और कांग्रेस की सरकार के बीच खुद का अस्तित्व स्थापित करना ही सबसे बड़ी चुनौती थी। पहले और दूसरे चुनावों में 3 और 4 सीटें जीतने के बावजूद जनसंघ का संघर्ष जारी रहा। 1968 में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की मृत्यु के बाद जनसंघ के सामने सबसे बड़ा संकट नेतृत्व का था और फिर 1969 में अध्यक्ष चुने गए अटल बिहारी वाजपेयी।
इसके बाद फिर लोकसभा चुनाव हुए और अटल की अगुवाई में जनसंघ ने देश की जनता को नारा दिया, “गरीबी के खिलाफ जंग।” 1975 में लगाए गए आपातकाल के दौरान भी जनसंघ ने अपने हिस्से की ज़िम्मेदारी बखूबी निभाई। 1977 में आम चुनाव हुए और महागठबंधन जनता पार्टी की सरकार बनी, अटल विदेश मंत्री बने और आडवाणी सूचना एवं प्रसारण मंत्री। भले सरकार 30 महीने में गिर गई पर 1980 में हुए सातवें लोकसभा चुनाव में जनसंघ ने एक बार फिर 35 सीट जीत कर अपनी मौजूदगी दर्ज कराई। इसके बाद जनसंघ ने भारतीय जनता पार्टी बनी, जिस पार्टी ने 1984 के चुनावों में 2 सीट जीती उसने ही 1989 के चुनावों में कुल 85 सीट हासिल की।
इस राजनीतिक दल के सामने विपरीत हालात कभी कम नहीं हुए, इसके बावजूद जनसंघ की मौजूदगी और प्रासंगिकता बराबर बनी रही। देश के राजनीतिक इतिहास में राजनीतिक दलों की कमी नहीं है, लेकिन याद चर्चा और स्मरण उनका ही किया जाता है। जिन्होंने जनता को निराश नहीं किया हो। अतीत कैसा भी रहा हो वर्तमान जनसंघ आज की भाजपा ही है। इस अवसर पर रमेश चौधरी, सावन जैन, सुनील कुमार, संदीप, नीरज, कमल कुमार, मुकेश कुमार, राजन, जोगेंद्र कुमार, हेमंत, धीरज, विनोद कुमार, आनंद कुमार, अनिल कुमार भी उपस्थित थे।