- पूर्व मंत्री कविता जैन ने तुलसी विवाह महोत्सव में शामिल होते हुए कमाया पुण्य
- -तुलसी-शालिग्राम विवाह की बधाई देते हुए पूर्व मंत्री ने किया मान्यताओं को निभाने का आग्रह
रणबीर रोहिल्ला, सोनीपत। पूर्व केबिनेट मंत्री कविता जैन ने तुलसी विवाह में शामिल होकर पुण्य कमाते हुए आम जनमानस को प्रोत्साहित किया कि वे अपनी मान्यताओं व परंपराओं को अवश्य निभायें। हमारी मान्यताओं के पीछे परोपकार व मानवहित निहित होते हैं, जिनका निर्वहन सुनिश्चित होना चाहिए। शिव मंदिर सिक्का कालोनी में तुलसी-शालिग्राम विवाह महोत्सव धूमधाम से मनाया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में पूर्व मंत्री कविता जैन शामिल हुई। उन्होंने कहा कि हमारी परंपराएं ही हमारी संस्कृति है। संस्कृति व सभ्यता के बिना कोई भी समाज जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए अनिवार्य रूप से हमें अपनी संस्कृति व सभ्यता से जुड़े रहना चाहिए। तुलसी-शालिग्राम विवाह भी इसी प्रकार की मान्यताओं से जुड़ा है।
पूर्व मंत्री ने बताया कि भगवान विष्णु आषाढ़ शुक्ल एकादशी को चार माह के लिए योग निद्रा में चले जाते हैं और देवउठनी एकादशी के दिन जागते हैं। इसके बाद भगवान विष्णु सबसे पहले तुलसी से विवाह करते हैं। इसलिए हर साल कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं तुलीस व शालिग्राम का विवाह करवाती हैं। इसके पीछे विशेष कथा है। उन्होंने बताया कि शंखचूड़ नामक दैत्य की पत्नी वृंतदा अत्यंत सती थी। बिना उसके सतीत्व को भंग किए शंखचूड़ को परास्त करना असंभव था। श्री हरि ने छल से रूप बदलकर वृंदा का सतीत्व भंग कर दिया और तब जाकर शिव ने शंखचूड़ का वध किया।
वृंदा ने इस छल के लिए श्री हरि को शिला रूप में परिवर्तित हो जाने का श्राप दिया। तब से श्री हरि शिला रूप में भी रहते हैं और उन्हें शालिग्राम कहा जाता है। पूर्व मंत्री कविता जैन ने जानकारी दी कि वृंदा ने अगले जन्म में तुलसी का रूप धारण किया। श्री हरि ने वृंदा को आशीर्वाद दिया था कि बिना तुलसी दल के कभी उनकी पूजा संपूर्ण नहीं होगी। भगवान विष्णु के विग्रह के रूप में शालिग्राम की पूजा की जाती है। शालिग्राम एक गोल काले रंग का पत्थर है जो नेपाल के गंडकी नदी के तल में पाया जाता है। इसमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा व पद्म खुदे होते हैं। पूर्व मंत्री ने लोगों को प्रोत्साहित किया कि वे उन्हें तुलसी-शालिग्राम विवाह में अवश्य शामिल होना चाहिए।