- सभी समस्याओं का कारण संस्कारहीनता, आर्य समाज उठाये संस्कार निर्माण की जिम्मेदारी : राज्यपाल आचार्य देवव्रत
देशी गाय का गोबर सूक्ष्म जीवाणुओं की फैक्टरी तो गोमूत्र में खनिजों का भंडार: राज्यपाल आचार्य देवव्रत
रणबीर सिंह रोहिल्ला, सोनीपत। गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने स्वामी श्रद्घानंद को नमन करते हुए कहा कि इस अमर बलिदानी की जीवनी बच्चों को अवश्य पढ़ानी चाहिए, ताकि नई पीढ़ी भी उनकी शिक्षाओं एवं आदर्शों को आत्मसात कर अपने जीवन को सफल बना सकें। उन्होंने कहा कि सारी समस्याओं का कारण संस्कारहीनता है। ऐसे में आर्य समाज को संस्कार निर्माण की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठानी होगी, जिसमें वे हर संभव मदद व सहयोग को सदैव उपलब्ध रहेंगे। आर्य प्रतिनिधि सभा हरियाणा व वेद प्रचार मंडल के संयुक्त तत्वावधान में शुक्रवार को एक निजी स्कूल में स्वामी श्रद्घानंद के बलिदान दिवस का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राज्यपाल आचार्य देवव्रत शामिल हुए। उन्होंने कहा कि स्वामी दयानंद के विचारों को सुनकर स्वामी श्रद्घानंद का संपूर्ण जीवन सकारात्मक रूप से परिवर्तित हुआ, जिसके बाद उन्होंने स्वामी दयानंद के विचारों का प्रचार-प्रसार किया।
गुरूकुल शिक्षा प्रणाली की पुर्नस्थापना के लिए गुरूकुल कांगड़ी की स्थापना की जो आज एक विश्वविद्यालय का रूप ले चुका है। उत्तर भारत में अधिकांश गुरुकुलों की स्थापना में उनका योगदान रहा है। शुद्घि आंदोलन चलाने वाले स्वामी श्रद्घानंद ने अंधविश्वास, पाखंड व सामाजिक कुरीतियों पर तीखे प्रहार करते हुए युवाओं को संस्कारों का पाठ पढ़ाया। किंतु आज के दौर में सगे भाइयों में ही मुकद्दमेबाजी हो रही है। वृद्घाश्रम खुल रहे हैं। इसका मूल कारण संस्कारहीनता है। आने वाली पीढ़ी व मानवता को बचाने के लिए संस्कार और मूल्यों की स्थापना की दिशा में विशेष प्रयास करने की जरूरत है। ऐसे में आर्य प्रतिनिधि सभा ने निर्णय लिया है कि वे अलग-अलग क्षेत्रों में वेद प्रचार मंडलों की स्थापना करते हुए स्वामी दयानंद के विचारों का प्रचार-प्रसार करेंगे।
सभ्य समाज की स्थापना के लिए यह निर्णय स्वागत योग्य है, जिसे साकार रूप प्रदान करने के लिए वे हर संभव सहयोग देंगे। एक समय था जब पूरा समाज आर्य समाजमय बन गया था। आर्य समाज ने चुनौतियों को स्वीकार करते हुए समाधान किये। आज फिर से आर्य समाज को जिम्मेदारी उठानी होगी, जिसके लिए लोगों के सुख-दुख में शामिल होकर आंदोलन के रूप में काम करना होगा। संस्कार स्थापना के साथ उन्होंने नशाखोरी के विरूद्घ भी अभियान चलाने पर बल दिया। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने इस दौरान किसानों को प्राकृतिक खेती की ओर लौटने के लिए विशेष रूप से प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक खेती का आधार देशी गाय है, जिसके गोबर व मूत्र के सहारे ही प्राकृतिक खेती संभव है।
उन्होंने कुरूक्षेत्र में स्थापित अपने गुरूकुल का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए बताया कि वे 200 एकड़ भूमि में खेती करते हैं, जिसमें एक बूंद भी यूरिया-डीएपी व किटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता। राज्यपाल ने कहा कि उन्होंने 120 एकड़ में धान की खेती की। प्रति एकड़ खेती में उनकी लागत मात्र एक हजार रुपये आई, जबकि एक एकड़ से उन्होंने औसतन 32 क्विंटल उत्पादन प्राप्त किया। वहीं, यूरिया-डीएपी-किटनाशकों का प्रयोग करने वाले किसानों की एक एकड़ में औसतन 15 हजार रुपये की लागत आती है। उत्पादन की बात करें तो औसतन एक एकड़ में 28 क्विंटल धान का उत्पादन मिलता है। यूरिया-डीएपी-किटनाशकों का प्रयोग लगातार बढ़ा है, जिससे किसानों की लागत भी नियमित रूप से वृद्घि की ओर अग्रसर है। ऐसे में किसानों को मुनाफा भी कम होता है।
आचार्य देवव्रत ने कहा कि किसानों को डर है कि प्राकृतिक खेती से उनकी उत्पादन क्षमता कम हो जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि पहले तीन वर्ष उत्पादन कम होगा, किंतु उसके बाद फायदा ही फायदा है। ऐसा जैविक खेती में होता है। प्राकृतिक खेती इससे भिन्न है। वहीं यदि यूरिया का इसी प्रकार प्रयोग करते रहे तो जल्द ही ऐसा समय आयेगा कि कितना भी यूरिया डाल लेंगे, लेकिन पैदावार नहीं होगी। कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार पहले भारत की भूमि की उर्वरा शक्ति दो से ढ़ाई प्रतिशत थी। अभी कुछ समय पूर्व आई नई रिपोर्ट के अनुसार उपजाऊ क्षमता 0.3, 0.4, 0.5 रह गई है। इस प्रकार भूमि बंजर होती जा रही है, जिसका प्रमुख कारण यूरिया-डीएपी-किटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग है। यूएनओ की रिपोर्ट के अनुसार यदि अगले 50 वर्षों तक विश्व में इसी प्रकार खेती होती रही तो पैदावार नहीं होगी। इससे कैंसर, शुगर, हार्टअटैक, किडनी फेल होने जैसी बिमारियां भी बढ़ी हैं।
इन समस्याओं का समाधान प्राकृतिक खेती है। राज्यपाल ने कहा कि देशी गाय की आंत में जीवाणुओं की फैक्टरी है और गोमूत्र में खनिजों का भंडार विद्यमान है। देशी गाय के एक ग्र्राम गोबर में करीब 300 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु होते हैं। देशी गाय के गोबर की खाद के प्रयोग से खेती की गुणवत्ता बढ़ती है। देशी गाय के गोबर व मूत्र से खाद बनाकर प्रयोग करना चाहिए। उन्होंने खाद तैयार करने की संपूर्ण विधि भी समझाई। साथ ही उन्होंने केंचुओं की सहायता से भी प्राकृतिक खेती को मिलने वाले विशेष बल की जानकारी दी। इसके अलावा उन्होंने विस्तार से प्राकृतिक खेती के फायदों की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि इस दिशा में कदम बढ़ाकर देश को बदलने की ओर कदम बढ़ा सकते हैं। यह समय की जरूरत भी है।