सांपला। हिंदी आंदोलन में शहीद हुए सुमेर सिंह आर्य का 65वां बलिदान दिवस वैदिक यज्ञ करके मनाया गया। यज्ञ के मुख्य यजमान प्रवीण आर्य व उनकी धर्मपत्नी स्वाति आर्या रही। यज्ञ के ब्रह्मा झज्जर गुरुकुल के आचार्य विजय पाल रहे। आचार्य ने बताया कि हिन्दी आन्दोलन को कामयाब बनाने के लिए अपने जीवन की कुर्बानी देने वाले क्रांतिवीर सुमेर सिंह आर्य श्रेष्ठ ब्रह्मचारी थे। उनका जन्म तत्समय के अविभाजित पंजाब और आज के हरियाणा में रोहतक जिले के नया बांस गांव के सांपला ब्लॉक में प्रभु दयाल आर्य (टांक रोहिल्ला राजपूत) के घर आदर्श गृहिणी श्रीमती ज्वाला देवी की कोख से 10 अगस्त, 1929 को हुआ था।
वे पांच भाई थे और उनकीं दो बहनें थीं। सुमेर सिंह बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के थे। उन्होंने सांपला के विद्यालय से मिडिल तक उर्दू में शिक्षा ग्रहण की। बालक सुमेर सिंह, आचार्य भगवान देवी (स्वामी ओमानन्द) और पंडित बस्ती राम के आर्य समाज के प्रचार-प्रसार से प्रभावित होकर देशभक्ति के कार्यों में गहरी रुचि लेने लगा। धीरे-धीरे सुमेर सिंह आर्य समाज की विचारधारा से रंग गए। इस बीच उन्होंने राष्ट्रभाषा हिन्दी में आगे की पढ़ाई करने का संकल्प लिया और राष्ट्रभाषा रत्न एवं प्रभाकर तक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद पूर्ण रूप से आर्य साहित्य का स्वाध्याय करने लगे।
युवा सुमेर सिंह श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। संध्या हवन (यज्ञ) भी मौखिक रूप से करने लगे। प्रात: चार बजे उठना, व्यायाम-प्राणायाम करना, संध्या करना, सत्यार्थ-प्रकाश, मनुस्मृति, संस्कार विधि, वेद-उपनिषदों आदि का नियमित स्वाध्याय करना उनकी दिनचर्या थी। आजीविका के रूप में उन्होंने सिलाई (टेलरिंग) की कला में निपुणता हासिल की। इस बीच आर्य समाज की गतिविधियों में बराबर भागीदारी करने के चलते उन्हें आचार्य भगवान देव के आशीर्वाद से आर्य समाज नया बांस शाखा में मंत्री चुन लिया गया। कुछ समय पश्चात सुमेर सिंह आर्य ने खतौली, जिला मुजफ्फरनगर में अपने भाई के साथ मिलकर टेलरिंग की दुकान खोली।
उनके दूसरे भाई ओम प्रकाश आर्य और लक्ष्मण सिंह आर्य भी वहीं काम करते थे। सुमेर सिंह ने खतौली कस्बे के बोंदू सिंह वाल्मीकि अखाड़े में अपने भाई के साथ लाठी, गदका और नंगी तलवार चलाने का प्रशिक्षण लिया। आर्य समाज की गतिविधियों में उनकी रुचि को देखते हुए उन्हें आर्यवीर दल खतौली शाखा का संचालक नियुक्त कर दिया गया। लेकिन, आर्य समाज की गतिविधियों में गहराई तक रम चुके सुमेर सिंह ने सभी घरेलू कार्य छोड़ दिए और स्वयं को राष्ट्रोत्थान में समर्पित कर दिया। वे बलवान, बुद्धिमान, आत्मविश्वासी और प्रखर वक्ता थे। उन्होंने पूर्ण रूप से और नि:स्वार्थ भावना से आर्य समाज के साथ जोड़ लिया। उन्होंने अपने परिजनों से विवाह बंधन में बंधने से भी मना कर दिया और आजीवन ब्रह्मचर्य का जीवन जीने और समाज व राष्ट्र के उत्थान में अटूट सेवा करने का संकल्प ले लिया।
सुमेर सिंह आर्य ने अपनी मातृभाषा हिंदी के मान सम्मान एवं उसे लागू करवाने हेतु अपने साथियों के साथ चंडीगढ़ में हिंदी सत्याग्रह आंदोलन आरंभ किया था। सत्याग्रह के दौरान उन्हें पहले बंदी बनाकर अंबाला कारावास में रखा गया और वहां से फिरोजपुर जेल भेज दिया गया। उन्होंने वहां भी आंदोलन जारी रखा और अपना जज्बा ज्यों का त्यों बनाए रखा। फिर आंदोलन के दौरान फिरोजपुर जेल में लाठीचार्ज के दौरान उनके सिर में गहरी चोट आई और वह वीरगति को प्राप्त हो गए। हम उनकी शहादत को नमन करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के संघर्ष के समय राष्ट्रभाषा हिन्दी के मान-सम्मान का विषय आया तो हरियाणा के महापुरूषों ने ‘हिन्दी आन्दोलन’ छेड़ दिया।
उस समय हरियाणा प्रदेश संयुक्त पंजाब का हिस्सा था। तब तत्कालीन मुख्यमंत्री सरदार प्रताप सिंह कैरों की संयुक्त पंजाब सरकार ने हिन्दी की उपेक्षा करते हुए अंग्रेजी और पंजाबी को प्राथमिकता देने और भाषाई आधार पर हरियाणा के लोगों से भेदभाव एवं अन्यायपूर्ण व्यवहार करने की कोशिश की तो हरियाणा के वीर हिन्दी प्रेमियों ने सरकार के खिलाफ बिगुल बजा दिया। हिन्दी के अस्तित्व व अस्मिता के लिए चले इस आंदोलन को ‘हिन्दी रक्षा आन्दोलन’ के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दी के मान-सम्मान के लिए हरियाणा प्रदेश के हजारों सत्याग्रहियों ने अटूट संघर्ष किया। उनका असीम त्याग और बलिदान भी स्वतंत्रता सेनानियों की तरह ही स्वर्णिम अक्षरों में अंकित हुआ। हिन्दी रक्षा आंदोलन मुख्य रूप से आर्य समाजियों द्वारा सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली और आर्य प्रतिनिधि सभा, पंजाब के संयुक्त नेतृत्व में चलाया गया।
हिन्दी के मान-सम्मान के लिए हजारों सत्याग्रहियों को जेलों में भयंकर यातनाएं सहनी पड़ीं और हरियाणा के रोहतक जिले के नयाबास गांव में जन्में वीर सूरमा सुमेर सिंह (टांक-रोहिल्ला राजपूत) सहित 18 वीर सत्याग्रहियों को अपने जीवन का बलिदान भी करना पड़ा। हिंदी सत्याग्रहियों के बुलंद हौंसलों को तोड़ने और उन्हें कुचलने के लिए तत्कालीन संयुक्त पंजाब सरकार ने ऐड़ी चोटी का जोर लगा दिया। 50,000 से अधिक हिन्दी सत्याग्रहियों को जेल में डालकर अनेक भयंकर यातनाएं दी गईं, लाखों रूपयों का जुर्माना जबरदस्ती वसूला गया। केवल इतना ही नहीं, सत्याग्रहियों के घर, खेत, पशु तक कुर्क कर लिए गए। लेकिन, सत्याग्रहियों पर सरकार की दमनकारी नीतियों का तनिक भी असर नहीं हुआ। संयुक्त पंजाब सरकार ने सत्याग्रहियों पर जितने अधिक जुल्म ढाए, सत्याग्रहियों ने उतने ही मुखर होकर अपने साहस और संकल्प का परिचय दिया। हिंदी सत्याग्रहियों का यह प्रेरणादायी और ऐतिहासिक आन्दोलन 27 दिसम्बर, 1957 तक चला।
यह हिन्दी आन्दोलन ही आगे चलकर हरियाणा प्रदेश के निर्माण की नींव बना और 1 नवम्बर, 1966 को भाषायी आधार पर हरियाणा प्रदेश का देश के 17वें राज्य के रूप में उदय हुआ। स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त लंबे समय तक चले हिंदी रक्षा आन्दोलन में अनेक उतार-चढ़ाव आए। लेकिन, इस दौरान 24 अगस्त, 1957 का वो दिन भी आया, जो भारतीय इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज हुआ। तत्कालीन संयुक्त पंजाब सरकार द्वारा हिन्दी सत्याग्रहियों पर असहनीय अत्याचार और अमानुषिक यातनाओं का दौर चरम पर था। हजारों सत्याग्रही देश-प्रदेश की कई जेलों में अनेक असहनीय जुल्म सह रहे थे। इन्हीं में से एक फिरोजपुर जेल थी, जिसमें बड़ी संख्या में हिन्दी सत्याग्रही कैद करके रखे गए थे। 24 अगस्त, 1957 की शाम सवा चार बजे एकाएक हिंदी सत्याग्रहियों पर सुनियोजित रूप से लाठीचार्ज करवा दिया गया। जेल में बंद खूंखार कैदियों को उकसा कर ताबड़तोड़ जानलेवा हमले करवाए गए।
जघन्य अपराधियों ने लाठी, डंडों, लोहे के सरियों और खाटों की मोटी बाहियों से हिंदी सत्याग्रहियों पर भयंकर धावा बोल दिया। हिंदी सत्याग्रहियों के हाथ, पैर, सिर और कमर को तोड़कर रख दिया गया। देखते ही देखते चारों तरफ खून से लथपथ, भयंकर दर्दभरी चिख-चिल्लाहट और मरणासन्न अवस्था में पहुंचे सत्याग्रहियों का नारकीय मंजर दिखाई देने लगा। बुखार से तड़पते सत्याग्रही फूल सिंह को भी टाट पर लेटे-लेटे इतनी बुरी तरह से पीटा कि उनकीं तीन पसलियां चकनाचूर हो गईं। अनेक सत्याग्रहियों के सिर फोड़ दिए गए। आर्य समाज के प्रणेता महर्षि दयानंद की अमर रचना सत्यार्थ-प्रकाश टाट पर बैठक कर तल्लीनता के साथ पढ़ रहे रोहतक जिले के नया बांस गांव के युवा वीर सत्याग्रही सुमेर सिंह को तो इतनी बुरी तरह से मारा-पीटा गया कि उनकीं मृत्यु हो गई।
वीर सत्याग्रही सुमेर सिंह की फिरोजपुर जेल में दी गई शहादत ने तत्कालीन संयुक्त पंजाब सरकार की जड़ों को हिलाकर रख दिया। 25 अगस्त, 1957 को पंजाब की फिरोजपुर जेल में हिंदी सत्याग्रहियों पर हुए जानलेवा हमलों का समाचार समाचार-पत्रों में प्रमुखता से प्रकाशित हुईं। एक दैनिक समाचार पत्र” में मोटे अक्षरों में लिखा था कि फिरोजपुर जेल में हिंदी सत्याग्रहियों पर जबरदस्त लाठीचार्ज हुआ, जिसमें गांव नया बांस के सुमेर सिंह की मौके पर ही मृत्यु हो गई और बहुत लोगों को गंभीर चोटें आई हैं। इस समाचार से आम जनता का भी खून खौल उठा।
हर कोई शहीद सुमेर सिंह जिन्दाबाद और शहीद सुमेर सिंह अमर रहे आदि नारों के साथ जेली, गंडासे आदि लेकर सड़कों पर उतर आया। पुलिस प्रशासन को कानून व्यवस्था बनाए रखना असंभव नजर आने लगा। शहीद सुमेर सिंह का शव नया बांस गांव में पहुंचने से पहले ही पुलिस ने कड़ी नाकाबंदी कर दी। जब आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष स्वामी अभेदानन्द महाराज उस गांव पहुंचे तो उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया। दूसरे गांव के लोगों को नया बांस गांव में पहुंचने ही नहीं दिया गया। शहीद सुमेर सिंह के भाई मेहर सिंह को भी गांव के बाहर नाके पर ही रोक लिया गया। लेकिन, जब उन्होंने अपना परिचय दिया तो उन्हें पुलिस अपनी निगरानी में उनके घर तक लेकर गई। इससे ग्रामीणों का आक्रोश चरम पर पहुंच गया। शहीद सुमेर सिंह के परिजनों ने समझदारी दिखाते हुए ग्रामीणों को शांत किया और कोई अन्य अनहोनी घटना न घट जाए, इसके लिए सावधान रहने का आग्रह किया।
25 अगस्त, 1957 का दिन भी शहीद सुमेर सिंह आर्य के परिजनों के लिए भयंकर पीड़ादायक रहा। देर रात हो चुकी थी। पुलिस सरकार के इशारों पर परिजनों पर रात को ही शहीद सुमेर सिंह के दाहसंस्कार के लिए भारी दबाव बनाए हुए थी और परिजनों को बेहद शर्मनाक धमकियां दे रही थी कि अगर उन्होंने रात को ही दाहसंस्कार नहीं किया तो वे मिट्टी का तेल डालकर शव को जला देंगे। इससे परिजनों और ग्रामीणों का गुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा। इन अति संवेदनशील क्षणों में शहीद के परिजनों ने पुलिस से आग्रह किया कि उन्हें आर्य प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष स्वामी अभेदानन्द महाराज से मिलवाया जाए, ताकि किसी निर्णय पर पहुंचा जा सके। नाजुक हालत देखते हुए पुलिस ने शहीद के परिजनों को स्वामी अभेदानन्द महाराज से मिलवाया।
स्वामी ने दो टूक कह दिया कि शहीद का अंतिम संस्कार रात्रि में कदापि नहीं होगा, चाहे कुछ भी हो जाए। स्वामी के इस निर्णय को पत्थर की लकीर मानकर शहीद के परिजनों ने भी पुलिस को दो टूक कह दिया कि जैसा स्वामी ने कहा है, वैसा ही होगा। पुलिस का भयंकर दबाव परिजनों पर चलता रहा, लेकिन उनके संकल्प के आगे पुलिस को अंतत: झुकना ही पड़ा। अगले दिन, 26 अगस्त, 1957 की सुबह हिन्दी आन्दोलन के अजर-अमर शहीद सुमेर सिंह आर्य का परिजनों ने दाह संस्कार किया। शहीद सुमेर सिंह आर्य जिंदाबाद और शहीद सुमेर सिंह आर्य अमर रहे के नारों से आसमान गूंज उठा। इनकी शहादत के बाद उनके छोटे भाई मेहर सिंह आर्य ने हिंदी आंदोलन में भाग लिया, और आंदोलन की बागडोर को संभाला। शहीद सुमेर सिंह आर्य के छोटे भाई महान स्वतंत्रता सेनानी व भाजपा के वरिष्ठ कार्यकर्ता मेहर सिंह आर्य का स्वर्गवास 28 जनवरी 2021 को हुआ था। वह करमपुरा दिल्ली में रहते थे ।
दिनांक 12 जनवरी 2022 को मेहर सिंह को सम्मानित करते हुए उनके नाम पर वार्ड नंबर 99 करमपुरा में “यूनानी आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक डिस्पेंसरी ” का नाम “स्वर्गीय मेहर सिंह आर्य आयुष कंपलेक्स” रखा गया। मेहर सिंह आर्य ट्रस्ट भी बनाया गया था ,जिसका संचालन पहले शहीद सुमेर सिंह आर्य के छोटे भाई मेहर सिंह आर्य ट्रस्ट के चेयरमैन के रूप में कर रहे थे। वर्तमान मे उनके नाम से प्रवीण आर्य जो मेहर सिंह आर्य के भाई के पुत्र हैं वे ही शहीद सुमेर सिंह आर्य ट्रस्ट का संचालन कर रहे हैं। यह सच्ची और इतिहास में दर्ज कथा निसंदेह हमारे समाज बंधुओं के लिए प्रेरणा दायक और गर्वोन्नत कर देने वाली है तथा देश के हिंदी प्रेमियों के लिए बलिदानी कथानक है कि ऐसे भाषा प्रेमी लाडले वीरों ने हिंदी के मान और सम्मान के वटवृक्ष को अपने प्राणों के बलिदान से सींचा और इसी क्रम को उनके वंशज आज भी आगे बढ़ा रहे हैं यह अत्यंत सुखद पहलू है।
ऐसे शहीद की याद करते हुए राष्ट्र के गणतंत्र दिवस की बयार में हिन्दी रक्षा आन्दोलन के शहीदों में स्वर्गीय सुमेर सिंह नाम स्मरण करते हुए उनके परिवार जनों का भी वृहत्त नामदेव समाज ऋण ज्ञापित करता है तथा आत्मसम्मान और गौरव की अनुभूति करता है एवं समाज के सभी वर्गों को आगे भी राष्ट्रभाषा के निज गौरव को योन ही सहेज कर निरंतर आगे प्रगति के सौपान चढ़ते जाने की अभिलाषा रखता है। इस अवसर पर डॉ राजेश आर्य फरमाना, विकास रोहिल्ला, अनिल रोहिल्ला मदीना, चेयरमैन विजेंद्र, अभिनंदन भारद्वाज, प्रवीण आर्य, ऋषि पाल आर्य, नरेंद्र पार्षद, मंजीत, अरुण आदि सभी परिवार के सदस्य एवं ग्रामीणों ने शहीद सुमेर सिंह आर्य को श्रद्धांजलि दी।