बरसात में चलाओ, गाड़ी ज़रा सम्भल के,
कब जाने कौन आये,गड्ढा कहीं निकल के।
मेरे शहर की सड़कें, पेरिस से कम नहीं है,
है क़दम-क़दम पे टूटी, लेकिन शर्म नहीं है।
आराम से चलो जी, गिर जाओ न फिसल के,
कब जाने कौन आये,गड्ढा कहीं निकल के।।
बरसात में चलाओ…
सरकारें आती जाती, लेकिन नजऱ नहीं है,
लाखों मरे हैं हर दिन, कोई असर नहीं है।
नेता जी देखें लाशें, चेहरे बदल बदल के,
कब जाने कौन आये,गड्ढा कहीं निकल के।।
बरसात में चलाओ…
हर कोई करता जल्दी, आगे में निकलूं फट से,
इतने में गाड़ी फ़सती, गड्ढे में जाके झट से।
सचिन लगाएं ताक़त,गाड़ी निकालें चल के,
कब जाने कौन आये,गड्ढा कहीं निकल के।।
बरसात में चलाओ…..
लेखक : सचिन गोयल, गन्नौर शहर सोनीपत हरियाणा