सोनीपत। गुडमंडी स्थित जैन मंदिर में मुनि विशोक सागर महाराज ने कहा कि प्रेम की पराकाष्ठा ही प्रार्थना है। प्रार्थना आत्मा की खुराक है, परमात्मा ऊर्जा का केंद्र है, शक्ति का केंद्र है, शक्ति का पुंज है, भक्त जब परमात्मा की प्रार्थना से जोड़ता है तो उस जीवन को नई ऊर्जा मिलती है। जिससे जीवन में स्फूर्ति उत्साह व आनंद कि अक्षय स्रोत फूट पड़ते है। जिससे जीवन का रोम रोम सुभाष से महकता है। प्रार्थना परमात्मा मंदिर तक पहुंचने के लिए सोपान है। सच्चे मन से की गई प्रार्थनाएं कभी व्यर्थ नहीं जाती है।
महावीर का मार्ग जिनों का मार्ग है, जिन का अर्थ जिन्होंने जीता है। अपने विकारों को अपनी कषायो को हमें भी अपने विकारों को कसाय को जीतकर जैन होना है। आंतरिक विकारों को जीत कर ही जिन हुआ जा सकता है। बाल ब्रह्मचारी पुष्पेंद्र शास्त्री ने कहा जीवन समर्पण मांगता है। भारत की संस्कृति अपरहण की संस्कृति नहीं अभी तो समर्पण की संस्कृति है। अगर तुम एक बार अपने आराध्य ईस्ट के प्रति सर्वस्व समर्पण कर दो तो फिर प्रभु तुम पर बलिहारी हो जाएगा। हमें राष्ट्र की मूल धारा से जुड़ कर धर्म समाज और राष्ट्र का उत्थान में अहम भूमिका निभानी है, जो राष्ट्र का खाता है पानी पीता है, लेकिन राष्ट्र की मूल धारा से नहीं जुड़ता वह गद्दार है, देशद्रोही है, राष्ट्र द्रोही है, राष्ट्रीयता की भावना ही भारतीयता की कसौटी है।