भारत में गौशालाओं की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। भारत एकता धार्मिक देश है, जहां पर गाय को माता का दर्जा दिया गया है। गाय को माता का दर्जा इसलिए भी दिया गया है कि प्राचीन काल में जब बच्चे की माता नहीं होती थी, तब गाय ही बच्चे की माता बनकर उसे दूध पिलाकर बड़ा करती थी। हालांकि यह मेरा व्यक्तिगत अंदाजा है कि ऐसा हुआ होगा। इसके अलावा गाय के शरीर की पवित्रता विज्ञान भी मानती है और इसके मूत्र से लेकर गोबर तक सभी बेशकीमती होते हैं। गाय गुणों का भंडार है, जिसका दूध अमृत के समान माना गया है। इसलिए भी इसको माता का दर्जा दिया गया है। गाय में 33 करोड़ देवी देवता निवास करते हैं, ऐसा बचपन से सुनते आए हैं, लेकिन गाय गुणों की खान है। इसमें कोई संदेह नहीं है। गाय को केवल एक पशु कहना उचित नहीं होगा। प्राचीन काल से गायों को संरक्षण दिया जा रहा है और असहाय या अपंग गायों के लिए गौशालाओं की परंपरा भारत की प्राचीन परंपराओं में से है। गौशालाओं में इलाज की भी सुविधा दी जाती है। गायों की सेवा के लिए बहुत से दानी गौशाला में दान भी करते हैं और उनके लिए चारा पानी का प्रबंध भी करते हैं। दूसरी तरफ इसकी वास्तविकता देखी जाए तो कुछ गौशालाओं का निर्माण और रखरखाव टैक्स को बचाने के लिए भी किया जाता है। गौशाला जैसी संस्था के लिए या उसकी आड़ में टैक्स भी बचाया जाता है, जिस गौशाला को टैक्स बचाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। वहां पर गायों के रहने के लिए गर्मी सर्दी का उचित प्रबंध मिलना मुश्किल काम है। प्राचीन समय से चली आ रही गौशालाओं में प्रबंध इसलिए अच्छे मिलते हैं, क्योंकि उनकी वास्तविकता जमीन से जुड़ी हुई है और उनका संचालन करने वाली समिति धार्मिक प्रवृत्ति की भी पाई जाती है, परंतु टैक्स के चक्कर में चलाई गई गौशालाए गर्मी सर्दी का प्रबंध नहीं करती। जिसके कारण बेहद गर्मी में गायें तड़प-तड़प कर दम तोड़ देती हैं, जिनकी सुनने वाला कोई नहीं है। भयंकर गर्मी और सर्दी में छत न होने के बाहर मैदान में रहती हैं, जिस कारण गायें तड़प-तड़प कर दम तोड़ती हैं। वहां पर किसी प्रकार का प्रबंध नहीं होता। उनकी मृत्यु को मृत्यु माना जाता है, क्योंकि गौशाला के अंदर उसे हत्या नहीं कहा जा सकता। मुनाफाखोर या लापरवाह संचालक इस और ध्यान ही नहीं रखते और शायद प्रशासन के पास भी इस बाबत ध्यान देने के लिए पर्याप्त समय नहीं होता। हमारे देश में इतनी गौशालाओं के होते हुए भी गायों का रोड शो सभी को देखने को मिल जाता है। कई बार तो रोड को पार करते समय या रोड पर चलते समय उनके हमले का भी शिकार होना पड़ता है और जान से भी हाथ धोना पड़ता है। कई बार ऐसा देखने में मिलता है कि रोड पर स्पीड से चल रही गाड़ी अंधेरे में अचानक रोड पर आ रही गाय को बचाने के लिए भी एक्सीडेंट होती है और कई बार गाड़ी वाले और गाय दोनों की ही एक्सीडेंट में मृत्यु हो जाती है। यदि गौशालाओं की भरमार है और सरकार भी सहयोग कर रही है तो रोड पर बेसहारा घूम रही गायों के लिए कोई प्रबंध क्यों नहीं किया जा रहा। भारत में गौ हत्या पर बैन है, जो बहुत अच्छा निर्णय है, परंतु गर्मी सर्दी में और रोड पर बेसहारा घूमने के कारण है जो हत्या या मृत्यु हो रही है। उस पर विचार कब किया जाएगा, यह भी एक विचारणीय विषय है। वर्षों पहले गौशालाओं को चलाने के लिए सांग इत्यादि भी किए जाते थे और गौशाला का प्रशासन दान इत्यादि लेने के लिए स्थानीय गांव और अन्य दानवीर लोगों के पास भी जाते थे, जिससे उन्हें दान या चंदा पर्याप्त मात्रा में मिल जाता था और गौशालाओं को चलाने में मदद मिलती थी। हालांकि परंपरा अभी भी बरकरार है, परंतु धीरे-धीरे रूप बदल रहा है। अब गौशालाओं में ज्यादा दूध देने वाली व अच्छी नस्ल की गाय पालने और दूध बेचकर पैसा कमाने की परंपरा भी बनती जा रही है, परंतु अपंग रोड पर फिरती रहे और खुद की वह दूसरे लोगों की मृत्यु का कारण बने, उसके लिए गौशाला में संरक्षण देने की प्राथमिकता अब कम हो गई है। वास्तविकता वही होनी चाहिए जिनके लिए गौशालाओं का उद्देश्य और परंपराएं हैं। गौशालाएं भारतीय परंपरा की शान भी हैं। इसलिए संचालकों को बेसहारा गायों को संरक्षण देने के लिए भी विचार किया जाना चाहिए। सरकार को भी चाहिए की गौशालाओं पर पूरी नजर रखें। समय-समय पर उनकी गिनती की जाए और गायों की मृत्यु होने पर उसका वाजिब कारण भी पूछा जाए और गर्मी, सर्दी या भूख के कारण मरने वाली गायों के बारे में जवाबदेही तय की जानी चाहिए।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक
ये लेखक के अपने विचार हैं