विनोद रोहिल्ला, शिक्षक, लेखक पेशे से सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं
जिस तरह वर्तमान शिक्षा का ढांचा चल रहा है, उस प्रकार निजी और सरकारी स्कूलों के बारे में आमजन को जानना बहुत जरूरी है। 30-40 साल पहले नाममात्र के निजी स्कूल होते थे, लेकिन अब निजी स्कूलों की काफी भरमार है। आज जो सीनियर अधिकारी हैं, उनमें से ज्यादातर सरकारी स्कूलों से ही निकले हुए हैं, परंतु वर्तमान दौर में निजी स्कूलों में बच्चे पढ़ाना एक फैशन सा और स्टेटस सिंबल बन गया था। जिसके कारण लोगों ने निजी स्कूलों की ओर रुख किया। निजी स्कूलों की बेरुखी और उनकी व्यवस्था से अभिभावक काफी समय से परेशान भी हैं और बंधे हुए भी हैं। निजी स्कूलों की मोटी फीस और अन्य प्रकार के खर्चे भी बहुत भारी है, कई बार नाक के सवाल के कारण ही निजी स्कूलों की मोटी फीस भरी जाती है। निजी स्कूल के बच्चों की पुस्तकें और वर्दी आदि भी कुछ चुनिंदा दुकानों पर मिलती हैं। जिन पर कमीशन खोरी का नंगा नाच देखने को मिलता है। यदि ढांचागत सुविधाओं की बात की जाए तो बहुत बड़े प्रोजेक्ट के निजी स्कूलों को छोडक़र आम निजी स्कूल, सरकारी स्कूलों की ढांचागत सुविधाओं का मुकाबला नहीं कर सकते। सरकारी स्कूलों में लंबे चौड़े मैदान, खेल के मैदान, बड़े-बड़े हवादार कमरे और अन्य सुविधाएं भरपूर मात्रा में मिलते हैं। शौचालय और पीने के पानी की सुविधा भी बड़े स्तर पर होती है, लेकिन कुछ निजी स्कूल जो केवल नाम के स्कूल होते हैं, वे किसी के घरों में या अन्य सार्वजनिक जगहों पर खोले जाते हैं, जिनमें सुविधाएं नहीं होती। कुछ स्कूल बहुत ही भीड़ भाड़ और छोटी जगहों पर खोले जाते हैं, जो बच्चों के स्वास्थ्य की दृष्टि से भी लाभकारी नहीं है। वैसे तो निजी स्कूलों की मान्यता के मापदंड निर्धारित हैं, परंतु बिना मापदंड के ही स्कूलों को मान्यता दी जाती रही है और आगे भी दी जाती रहेगी। सरकारी स्कूलों के शिक्षक क्वालिफाइड और स्थाई होते हैं जो सभी प्रकार के टेस्ट पास करके सेवा में आते हैं, जिन्हें पढ़ाई का भी अनुभव है और शिक्षण ही उनका एकमात्र पेशा होता है। जबकि निजी स्कूलों के अध्यापकों का कोई स्थाई पेशा नहीं होता। वे अस्थाई तौर पर भी काम करते हैं, इसमें सबसे बड़ी बात यह होती है कि बहुत से निजी स्कूलों में बेरोजगार लोग ही शिक्षक के रूप में देखे गए हैं। यदि सुविधाओं की बात की जाए तो सरकारी स्कूलों में बच्चों को किताबें मुफ्त में दी जाती हैं। किताबें अच्छे स्तर की होती हैं। सरकारी स्कूलों के बच्चों को मिड डे मील अर्थात दोपहर के भोजन की सुविधा मिलती है जो स्कूल में ही बनाकर खिलाया जाता है। इस पर सरकार बहुत बड़ा खर्च करती है जो निजी स्कूलों के बूते में नहीं है। दोपहर के भोजन में अब दूध भी दिया जाने लगा है। अच्छी कंपनी का दूध जो पोष्टिक और कई तरह के फ्लेवर में आता है, वही बच्चों को पिलाया जाता है। बच्चों को कई तरह की राहत सामग्री दी जाती है और साल में दो तीन बार या उससे भी ज्यादा बार बच्चों के खातों में पैसा डाला जाता है जो उनकी शिक्षा व्यवस्था के काम आता है। सभी बच्चों के दाखिले के समय ही अध्यापक उनके बैंक में खाते खुलवा देते हैं, जिससे कि हेड ऑफिस से सीधा पैसा बच्चों के खाते में चला जाता है। सरकारी स्कूल सबकी पहुंच में है, चाहे कोई कितना ही गरीब हो सब उसमें शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, परंतु निजी स्कूलों में अपने बच्चे पढ़ाना सब लोगों के बस की बात नहीं होती। सरकारी स्कूलों में या तो बच्चों को वर्दी दी जाती है या फिर वर्दी के पैसे उनके खाते में डाले जाते हैं। जिससे कि अभिभावक उनकी मनपसंद से बच्चों की वर्दी बनवा लेते हैं। सरकारी स्कूलों में अक्सर यह देखने में आया है कि गरीब तबके के बच्चे स्कूल में नियमित नहीं आ सकते। उनके माता-पिता को भिन्न-भिन्न प्रकार के कामों के तहत बाहर जाना पड़ता है, जिससे कि बच्चों को भी साथ में ही जाना पड़ जाता है और बच्चों की पढ़ाई बाधित होती है। इससे परीक्षा परिणाम भी बाधित होते हैं। हालांकि बेहतर परीक्षा परिणाम का दबाव अध्यापकों पर होता है, लेकिन बच्चा नियमित तौर पर स्कूल में ना आए तो भी उसके परीक्षा परिणाम को बेहतर बनाने के लिए सरकारी स्कूल के अध्यापकों के ऊपर अतिरिक्त दबाव रहता है। जिसके कारण अध्यापक अतिरिक्त कक्षाएं भी लेते हैं, परंतु निजी स्कूलों में मुफ्त में इस प्रकार की सुविधाएं नहीं होती। आजकल जब परीक्षाओं के परिणाम आते हैं, तब यह देखने में आता है कि सरकारी स्कूलों के बच्चे ही बाजी मारते हैं और आगे जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करने में भी अग्रणी रहते हैं। उनमें फीस समय पर देनी होती है, यदि समय पर फीस न दी जाए तो बच्चे का नाम काट दिया जाता है और पढ़ाई से उसे वंचित कर दिया जाता है। बच्चे की थोड़ी सी कमजोरी के कारण ही उसे फेल किया जाता है, जबकि सरकारी स्कूलों में उसका ब्रिज कोर्स करवाकर उसे उसी कक्षा के स्तर अनुसार पढ़ाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है। सरकारी स्कूलों में बहुत से लोग समय-समय पर कई प्रकार के दान करने आ जाते हैं। जैसे कि सर्दियों में जर्सी इत्यादि बांटना व बच्चों के लिए कई प्रकार की सुविधाएं दी जाती है। सरकारी स्कूलों में ज्यादातर बच्चे अभावग्रस्त होते हैं, जिन्हें सरकारी मशीनरी से ही लाभ मिलता है और बच्चे अपनी पढ़ाई पूरी कर पाते हैं, परंतु अभावग्रस्त परिवार निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाने में सक्षम नहीं होते।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक
लेखक पेशे से सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं