वैसे तो संसार में जन्म और मृत्यु दो समानांतर चलने वाली प्रक्रिया हैं। पूरे संसार में प्रतिदिन जन्म होते हैं और प्रतिदिन मृत्यु में होती रहती हैं। भारत में भी ऐसा ही है, परंतु मृत्यु के कारण अनेक हैं। स्वाभाविक मृत्यु एक अलग बात होती है, परंतु अकाल मृत्यु के बहुत से कारण हैं। जिनमें गटर में समा कर मृत्यु हो जाना एक बहुत बड़ी दुखद घटना होती है। इस देश में किसानों की मृत्यु, मजदूरों की मृत्यु बहुत होती रहती है, जिस पर राजनीति भी होती है और आंदोलन की खड़े हो जाते हैं, जो मृत्यु होती है उसे शहादत का नाम भी दे देते हैं और देना भी चाहिए। जो जवान अपने देश की रक्षा करते हुए अपना सर्वोच्च बलिदान दे, वह बहुत बड़ी शहादत होती है। उन्हीं वीर शहीदों के कारण देश की बाकी जनता अपने घरों में सुरक्षित रहती है। किसान देश के लिए अन्न पैदा करता है और जब वह आत्महत्या कर लेता है तो वह भी एक प्रकार की शहादत कही जा सकती है। देश की सेवा करते हुए, सरकारी संपत्ति की रक्षा करते हुए जो व्यक्ति अपनी जान दे देता है अपना फर्ज पूरा करते हुए एक पुलिस वाला अपनी जान दे देता है या रेलगाड़ी चलाता हुआ या रेलवे का कर्मचारी जब हादसे का शिकार होकर मर जाता है तो वह भी एक प्रकार की शहादत ही होती है। जब कोई कर्मचारी सरकारी ड्यूटी पर मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो वह भी एक प्रकार की शहादत है, परंतु देश की गंदगी साफ करने वाला वह मजदूर है जो गटर में समा जाता है उसको शायद शहादत नहीं माना जाता जो दुर्भाग्यपूर्ण है। देश में जब भी कोई दंगा होता है या किसी की घटना दुर्घटना या अनहोनी घटना पर जब राजनीति होती है या राजनीतिक लोग किसी की मृत्यु पर बहुत बवाल खड़ा करते हैं, टेलीविजन पर डिबेट होती है और अन्य प्रकार की राजनीति होती है, सरकारें तक हिल जाती हैं, बड़े-बड़े सेलिब्रिटी फिल्मी सितारे भी उस में भाग ले लेते हैं, वे किस पार्टी की ओर से भाग लेते हैं यह एक अलग विषय है, परंतु भाग अवश्य ले लेते हैं। सीमा पर शहीद होने वाले सैनिक की शहादत पर भी नेता जाते हैं, यह एक परंपरा भी है, परंतु यह राजनीति से परे होती है। देश में जब कोई घटना होती है तो उसे सांप्रदायिकता का रंग देने में भी हमारे नेता कोई कसर नहीं छोड़ते। उसमें मजहबी सेकुलर लोग अपनी-अपनी तरफ से मामले पैरवी करते हैं और अपना-अपना हाथ साफ कर जाते हैं। मजहबी सेकुलरों को बस मरने वाले का मजहब चाहिए, मजहब के हिसाब से वे अपने-अपने स्टेटमेंट देते हैं और मौके पर चले जाते हैं। यही लोकतंत्र की सबसे बड़ी कमजोरी होती है कि यहां देश की परवाह न करते हुए केवल वोटों की परवाह है की जाती है। बस वोट चाहिए, देश के गद्दारों के हों या देश विरोधी विचारधारा वाले लोगों के हों। देश विरोधी विचारधारा के लोगों के वोट प्राप्त करने के लिए देश विरोधी राजनीति करना भी एक आम बात है फिर वह लोग गटर में जान देने वाले मजदूर की मृत्यु पर कैसे आगे आकर उस परिवार के लिए एकजुट होकर उसकी मदद करने के लिए आगे आ सकते हैं? हमने कई बार देखा है कि किसी विशेष मजहब के व्यक्ति की मृत्यु पर कई पार्टियां एकजुट होकर राजनीति करने लग जाती हैं, परंतु यह शायद ही कभी देखा गया हो की गटर में जान देने वाले मजदूर को न्याय दिलाने के लिए कभी राजनीतिक पार्टियां एकजुट हुई हों? गटर में शहीद होने वाले व्यक्ति के घर से वोटों का फायदा नहीं होता। अर्थात वहां पर राजनीतिक लोग इसलिए जमावड़ा नहीं करते क्योंकि वहां पर उनकी राजनीति नहीं चलती। जहां पर उन्हें वोटों का फायदा मिलता है केवल वहीं राजनीति की जाती है, फिर गटर में शहीद होने वाले के घर जाकर समय व्यर्थ करने का क्या लाभ। इस मामले में हमारे टीवी चैनल भी पीछे नहीं है, क्योंकि वे भी वहां जाकर अपनी कवरेज नहीं करते, वहां उनकी टीआरपी नहीं बढ़ती। जहां मजहबी सर्कुलर इक_े होते हैं , वहीं टीवी चैनल वाले भी जाते हैं। वहीं पर सब प्रकार की राजनीति होती है, वहीं पर टीवी डिबेट होती है। वहीं पर टीआरपी बढ़ती है, परंतु गटर में शहीद होने वाले हैं घर में व्यर्थ में समय बर्बाद करने से क्या लाभ है। ऐसा नहीं है की गटर की सफाई करते उसमें जान देना कोई आम बात है। इसमें सबसे बड़ी बात यह है कि उन गरीब मजदूरों के लिए सरकार वह साधन नहीं उपलब्ध करवाती है जो उनके लिए करवाए जाने चाहिए। गटर की सफाई करने वाले गरीब मजदूर उस कमजोर आर्थिक स्थिति के होते हैं जो अपनी आवाज ही नहीं उठा पाते अर्थात उन्हें अपने हकों के लिए लडऩा भी नहीं आता, ना ही मजदूरों को उत्तम दर्जे के संसाधन दिए जाते और न ही उनके लिए सरकारें कोई उपाय करती हैं। बस गटर में जान देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। देश में हजारों की संख्या में जाने चली जाती हैं और उनके परिवार अनाथ हो जाते हैं। उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता उन पर कोई राजनीति नहीं होती उन पर कोई टीवी डिबेट नहीं होती और उन पर कोई टीआरपी नहीं मिलती चुनाव के समय में बहुत से मुद्दे जनता के सामने पेश किए जाते हैं और वादे भी किए जाते हैं, परंतु ऐसा कोई वादा नहीं किया जाता जिसमें यह कहा गया हो कि आगे से किसी मजदूर को गटर में गिर कर नहीं मरने देंगे। उनके लिए उत्तम दर्जे के संसाधन उपलब्ध करवाए जाएंगे। जिससे कि उनकी और उनके परिवार की सुरक्षा पुख्ता हो जाए या उनके जान और परिवार की सुरक्षा की गारंटी ली जा सके। ये देश के वे नागरिक या कर्मचारी हैं, जिनके बिना स्वच्छ भारत का सपना पूरा नहीं किया जा सकता।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक, लेखक सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं