जिस तरह भारत के दो पड़ोसी देशों का भारत से दुश्मनी रखना या भारत से खराब रिश्ते होना निश्चित तौर पर भारत की तरक्की में बाधा है। ये दोनों ही पड़ोसी देश गाहे-बगाहे हमें नुकसान पहुंचाने की कोशिश करते रहते हैं, क्योंकि इन दोनों देशों से दुश्मनी अतीत और इतिहास की देन है, जहां हमारे देश के नेताओं और हमारी सरकारों से चूकें हुई, उनका खामियाजा नई पीढ़ी भुगत रही है। यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा कि अगस्त 1947 में भारत की आजादी मिलते ही समस्याएं शुरू हो गई। भारतीय रियासतों के आजादी मिलने के फरमान और भारत के दो हिस्से बनाए जाने का फरमान भी इतिहास की ही देन है। अंग्रेजों के भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम में भी चालाकी थी, अधिनियम के अनुसार देसी रियासतों को छूट दी गयी थी कि वे चाहे जिस देश में शामिल हो सकती हैं या अपना अलग देश के रूप में अपना वजूद चाहती हैं तो वे अलग हो सकती हैं। इसी के चलते जूनागढ़, हैदराबाद और जम्मू कश्मीर जैसी रियासतों के रूप में हमें चुनौती मिली। जूनागढ़ और हैदराबाद की चुनौती सरदार वल्लभभाई पटेल की कूटनीति और ताकत के दम पर हमने जीत लिया, परंतु तत्कालीन प्रधानमंत्री की कार्यशैली के कारण जम्मू कश्मीर की नीति में हम कामयाब नहीं हो पाए। जिस प्रकार जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ वह एक युद्ध काल था। जम्मू कश्मीर पर पाकिस्तान का हमला हुआ था। इसके परिणाम स्वरूप जम्मू कश्मीर ने भारत में अपने विलय के पत्र पर हस्ताक्षर किए, परंतु गिलगित बालटिस्तान एक ऐसा प्रांत था जो भारत को मध्य एशिया से जोड़ता था। यदि उस समय भारत गिलगित बालटिस्तान पर अपना नियंत्रण स्थापित कर लेता तो मध्य एशिया से उसका सीधा रास्ता बन जाता। यह तो अब इतिहास और अतीत का विषय है। इसलिए अब वर्तमान के तहत ही इस पर विचार विमर्श किया जाना जरूरी है। यदि गिलगित बालटिस्तान के इतिहास पर नजर डालें तो पाकिस्तान ने यह एरिया बाद में अपने नियंत्रण में लिया था। इसके बाद इस पर दुनिया के अन्य शक्तिशाली देशों की भी कुदृष्टि रही, परंतु चीन के अलावा किसी और देश की नीति इस क्षेत्र को अपने नियंत्रण में लेने में कामयाब नहीं हो पाई। चीन बहुत ही शातिर देश है, जो धीरे-धीरे इस स्थान पर अपनी घेराबंदी करता जा रहा है। चीन ने 1962 में भारत पर हमला किया और 37500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर अपना अधिकार जमा लिया। यह लद्दाख का क्षेत्र है, तत्कालीन भारत सरकार इस क्षेत्र को चीन से वापस नहीं ले पाई। जिसके कारण अगले ही साल 1963 में पाकिस्तान ने गिलगित बालटिस्तान के 5180 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को चीन को दान कर दिया या दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि पाकिस्तान में इस जमीन को चीन को बेच दिया। यदि यह हिस्सा भारत के नियंत्रण में होता तो चीन और पाकिस्तान की दूरी होती और बीच में भारत होता, इससे पूरा का पूरा समीकरण ही भारत के पक्ष में होता, परंतु ऐसा नहीं हो पाया। इसके पश्चात इस खूबसूरत इलाके में चीन ने योजनाबद्ध तरीके से अपना दखल देना प्रारंभ कर दिया और भारत ने अपनी चुप्पी साध ली। भारत कभी भी खुलकर चीन का विरोध नहीं कर पाया कि गिलगित बालटिस्तान या पाक अधिकृत कश्मीर का यह स्थान या तो विवादित है या फिर भारत का हिस्सा है, परंतु चीन का दखल भारत ने स्वीकार करके भारतीय विदेश नीति की विफलता को दर्शा दिया। धीरे-धीरे चीन भारत की रक्षात्मक और चुप्पी की नीति को भांप गया और आगे बढ़ता गया। धीर-धीरे चीन के प्रोजेक्ट आते गए और चाइना, पाकिस्तान इकनॉमिक कॉरिडोर के रूप में चीन ने इस इलाके में अपना निवेश बढ़ाना प्रारंभ कर दिया। हालांकि इस क्षेत्र के लोगों ने चीन का विरोध भी किया और अब भी किया जा रहा है, परंतु पाकिस्तान की सेना इस विरोध को दबा देती है। इस इलाके में जो भी गतिविधियां संचालित होती हैं। वे चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी से ही क्रियान्वित की जाती है। चाइना पाकिस्तान इकोनामिक कॉरिडोर के जरिए चीन ने इस क्षेत्र में अपना निवेश और अपनी ताकत बढ़ाना शुरू कर दिया और चाहे किसी भी प्रकार का मंच हो या संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद हो, हर जगह चीन पाकिस्तान की तरफदारी करता है और भारत के खिलाफ मुखर होकर खड़ा हो जाता है। इस इलाके में चीनी सेना का जमावड़ा भी बढ़ता जा रहा है या चीन और पाकिस्तान दोनों की जुगलबंदी से इस क्षेत्र को पाकिस्तान या चीन दोनों के नियंत्रण में पक्का करने की योजना पर कार्य चल रहा है। यह दोनों देश इस एरिया को या तो पूर्णतया पाकिस्तान का हिस्सा बनाएंगे या फिर 5180 वर्ग किलोमीटर के एरिया की तरह यह चीन का हिस्सा बन जाएगा। यदि पाकिस्तान इस क्षेत्र को चीन को बेच दे तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। भारत की विदेश नीति में बदलाव जरूरी है, इस क्षेत्र के लिए भारत सरकार को बहुत ही सतर्क और सावधान होकर अपनी नीति बनाकर इन दोनों देशों की जुगलबंदी को तोडऩे का प्रयास करना चाहिए।
विनोद रोहिल्ला, लेखक सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं