हमारे देश भारत में गीता का बहुत महत्व है, यह केवल हमारे देश में ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया में माना जाने वाला एक ग्रंथ है। गीता की उपयोगिता केवल हिंदू धर्म में ही नहीं, अपितु सभी धर्मों और समुदाय में काफी मायने रखता है। अतीत में जिन देशों ने हमारे देश के ऊपर राज किया, हमें गुलाम बनाकर रखा, उन्होंने भी गीता को अच्छी दृष्टि से देखा है और उसकी उपयोगिता को माना है। हमारे सिलेबस में बहुत से विषय पढ़ाए जाते हैं, जिसमें कर्म से संबंधित शिक्षाएं दी जाती हैं, क्योंकि कर्म का हिंदी में अर्थ काम होता है यानी कि कर्म करने को प्राथमिकता दी है। गीता में भी कर्म की प्रधानता को स्वीकार किया है। हमारे सिलेबस में छोटे-छोटे पाठ और अन्य विषय वस्तु दी गई है जिनके शीर्षक कर्म की जीत इत्यादि भी रखे गए हैं, परंतु गीता का अध्ययन हमारे सिलेबस में नहीं है, जोकि होना चाहिए। मोरल एजुकेशन या नैतिक शिक्षा की बात की जाए तो गीता में नैतिकता और कर्म की प्रधानता की भी महानता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि गीता हमारी संस्कृति की पहचान है, भारतीय संस्कृति विश्व की श्रेष्ठतम संस्कृति है। यह भारत के लोग भी मानते है और विश्व भी मानता है। हमारी संस्कृति और हमारे पूर्व के संस्कार या हमारे देसी कैलेंडर हों, हमारी भौतिक शास्त्र या खगोल शास्त्र हो, सभी का अपना महत्व आज भी ज्यों का त्यों है। हमारी संस्कृति की पहचान को बनाए रखने और संस्कृति को जीवित रखने या फिर संस्कृति को पूरी दुनिया में फैलाने के लिए गीता एक बहुत उपयोगी और ग्रंथ भी है। गीता जीवन का सार है, आज बहुत से टेलीविजन के चैनल और बहुत से धर्म गुरु या धर्म ग्रंथ जीवन के बारे में बहुत सी बातें बताते हैं, परंतु जीवन की जो सच्चाई गीता में विस्तार से बताई गई है, वह संसार में कहीं नहीं बताई गई। जीवन में व्यक्ति को किस प्रकार का कर्म करना चाहिए और किस प्रकार का कर्म न करना चाहिए यह विषय गीता में खोलकर बताया गया है। हजारों साल पहले लिखे गए ग्रंथ की उपयोगिता आज भी संसार का कोई ग्रंथ कम नहीं कर पाया है। यही गीता का सार है और जीवन का भी सार है। गीता व्यक्ति की चिंताओं और द्वंद युद्ध को समाप्त करती है। आज का व्यक्ति भागदौड़ की दुनिया में बहुत से द्वंद से ग्रस्त है। गीता के अध्ययन से व्यक्ति के द्वंद युद्ध पर विजय प्राप्त करने में सहायता मिलती है। यूं तो हमारे सिलेबस में बहुत सी उपयोगी जानकारियां दी गई है और बहुत से ऐसे पाठ्य विषय दिए गए हैं, जिनकी उपयोगिता जीवन जीने में शायद ही उतनी ने हो, परंतु फिर भी ऐसी विषय वस्तु हमारे सिलेबस में बहुत मिल जाती है। यदि गीता अध्ययन को हमारी विषय वस्तु में शामिल कर लिया जाए तो यह हमारे समाज में जीवन को सरल बनाने में जरूर मदद करेगी। यदि शिक्षा की बात की जाए तो शिक्षा व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाती है और अज्ञानता से ज्ञान की ओर भी ले जाती है। व्यक्ति शिक्षित होकर भी दुखी रहता है, चिंतित रहता है और अभावग्रस्त रहता है तो ऐसी शिक्षा का क्या अर्थ? शिक्षित होकर व्यक्ति समाज में बेहतर तालमेल स्थापित करें और स्वयं और समाज के जीवन को सुखी और कामयाब बनाएं। यही शिक्षा के उद्देश्य होते हैं, परंतु आज ऐसा नहीं है, बल्कि समाज का आईना इसके बिल्कुल विपरीत दिखाई देता है। हम गीता जयंती उत्सव या अन्य प्रकार के सांस्कृतिक उत्सव मनाते हैं, गीता जयंती के लिए बजट भी खर्च होता है जो हमारी संस्कृति को जीवित रखने व हमारे सांस्कृतिक मूल्यों को जागृत रखने में बहुत उपयोगी है, परंतु उसी प्रकार बच्चों के सिलेबस में इसका अध्ययन करने का काम किया जाए तो यह और भी बेहतर हो सकता है।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक
लेखक सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं।