सरकारी स्कूलों में भवन और प्रांगण की समस्या तो बिल्कुल नहीं है, बल्कि खेल के मैदान भी प्राय सभी स्कूलों में पाए जाते हैं। कुछ बहुत बड़े निजी स्कूलों में तो सुविधाएं सरकारी स्कूलों की बजाय बेहतर मिल जाएंगी, परंतु असंख्य निजी स्कूल ऐसे हैं, जिनमें भवन है ही नहीं। केवल किराए के भवनों या पुराने बंद पड़े मकानों में स्कूल मिलते है। यदि गांव की बात करें तो धर्मशाला या सार्वजनिक चौपाल में भी निजी स्कूल मिल जाएंगे। बहुत से निजी स्कूल केवल दुकान के नाम पर ही हैं और कुछ मान्यता प्राप्त स्कूल भी इंफ्रास्ट्रक्चर के मामले में फिसड्डी नजर आते हैं। जहां तक सरकारी स्कूलों की बात की जाए इन स्कूलों में जगह की कोई कमी नहीं होती और कमरों की भी कमी नहीं है। इसी कारण खुले वातावरण का जो माहौल सरकारी स्कूलों में मिलता है, वह प्राइवेट में तो मिल ही नहीं सकता। सरकारी स्कूलों में भवन निर्माण या नए कमरों के निर्माण में आवश्यकतानुसार सरकारी ग्रांट मिल जाती है, परंतु स्कूल की चमक-दमक के लिए बिना मांगे ग्रांट जारी नहीं की जाती थी। अब सत्र 2019-20 में सरकार द्वारा फेस लिफ्टिंग के नाम पर बिना डिमांड के ही ग्रांट जारी की गई थी। सरकारी स्कूलों में फेस लिफ्टिंग के नाम पर जो ग्रांट आई उससे अध्यापकों ने स्कूलों को चमकाने का काम किया। या यूं कहें कि स्कूलों की सुंदरता में चार चांद लगा दिए। सरकारी स्कूलों के अध्यापक सरकारी ग्रांट खर्च करने के मामले में सबसे ज्यादा भरोसेमंद माने जाते हैं। बहुत से शिक्षक तो ऐसे होते हैं जो ग्रांट से ज्यादा पैसे खर्च कर देते हैं, परंतु कार्य को बड़े मन लगाकर करते हैं। इससे शिक्षण कार्य में बाधा आने की संभावना तो रहती है, परंतु मेहनती अध्यापक फिर भी समय निकाल कर इसमें अपना सर्वोत्तम देने की कोशिश करते हैं। सरकारी अध्यापकों की यह लंबे समय से मांग रही है कि हमें केवल शैक्षणिक कार्यों तक का सीमित रखा जाए, यह मांग केवल सरकारी शिक्षकों की ही नहीं बल्कि आरटीई का नियम व नई शिक्षा नीति भी कहती है कि शिक्षकों से केवल शैक्षणिक कार्य ही लिए जाएं, उन्हें गैर शैक्षणिक कार्यों से दूर रखा जाए। गैर शैक्षणिक कार्यों से बच्चों की पढ़ाई पर विपरीत असर पड़ता है, परंतु सरकारी आंकड़े या शिक्षा विभाग का यह मानना है कि केवल और केवल एक अध्यापक ही है जो जारी की गई ग्रांट का सर्वाधिक प्रयोग करता है और भवन निर्माण में अच्छी सामग्री का प्रयोग भी करता है। इसी का नतीजा यह मिल रहा है कि फेस लिफ्टिंग की ग्रांट से अध्यापकों ने अपने स्कूलों को चमका दिया है। इस ग्रांट राशि से स्कूल के फेस को चमकाना होता है, जिससे अध्यापक अपनी मनपसंद चित्रकारी विद्यालय में करवाते हैं और स्कूल की सुंदरता को चार चांद लगाते हैं। फेस लिफ्टिंग की राशि का सभी स्कूलों द्वारा लगभग प्रयोग किया जा चुका है और इसके यूटिलाइजेशन सर्टिफिकेट भी स्कूलों द्वारा शिक्षा विभाग को दिए जा चुके हैं। अब जब शिक्षा विभाग के आला अधिकारी स्कूलों में निरीक्षण के लिए जाते हैं तो वे इस बात की शाबाशी भी देते हैं कि स्कूल में बहुत बढिय़ा चित्रकारी और सुंदरता को बढ़ा दिया है। सभी स्कूल आपको इस प्रकार दिखाई देने लगेंगे कि जैसे स्कूलों में कुछ न कुछ नया जरूर हो चुका है। स्कूल के बाहर से गुजरते हुए ग्रामीण या अन्य अभिभावक भी यह बदलाव साफ देख रहे हैं कि स्कूलों में वास्तव में काम हुआ है और स्कूलों की सुंदरता को बढ़ाया गया है। शिक्षा विभाग द्वारा स्कूलों के स्तर के अनुसार अलग-अलग से राशि जारी की गई थी। सरकारी स्कूलों की कैटेगरी भी अलग-अलग है, जिसमें प्राथमिक विद्यालय, माध्यमिक विद्यालय, उच्च विद्यालय व वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय शामिल होते हैं। कुछ छोटे और बड़े विद्यालय एक ही प्रांगण में स्थित होते हैं तो कुछ अलग-अलग प्रांगण में स्थापित है। पिछले कुछ वर्षों से सरकारी स्कूलों का शिक्षा स्तर काफी अपग्रेड हुआ है और बोर्ड परीक्षाओं से लेकर अन्य प्रतियोगिताओं में भी सरकारी स्कूलों के बच्चे अपना दबदबा कायम रख रहे हैं। साथ में स्कूलों की सुंदरता का मेल-जोल़ काफी आकर्षक लग रहा है। स्कूलों में दो ही चीजों का महत्व सबसे बड़ा होता है, प्रथम यह किस स्कूल का शैक्षिक सत्र ऊंचा होना चाहिए। जिसमें शिक्षक अपना सर्वोत्तम योगदान दें, दूसरा पहलू इसमें यह है कि जिस भवन में शिक्षा दी जा रही है वह भवन आकर्षक व सुंदर होना चाहिए। साथ में छायादार व हवादार होना चाहिए। इन दोनों ही मामलों में पहले दिल्ली सरकार ने बहुत ध्यान दिया और अपना एक उदाहरण देश के सामने पेश किया। हरियाणा सरकार ने भी इस मामले में अपना सकारात्मक रवैया पेश करते हुए सरकारी स्कूलों को दी जाने वाली ग्रांट पर ध्यान देना प्रारंभ किया। जिससे सरकारी स्कूलों के शैक्षणिक और इंफ्रास्ट्रक्चर स्तर में बदलाव देखने को मिल रहे हैं। कार्य यदि सकारात्मक सोच के साथ निर्बाध गति से बढ़ता रहा तो और भी ज्यादा परिवर्तन देखने को मिलेंगे।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक
लेखक सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं