जैसे ही दुनिया में कोरोना महामारी ने अपने पैर पसारे हैं, वैसे ही पूरी दुनिया का ढांचा अस्त-व्यस्त हो गया है। दुनिया के सभी देशों में कोरोना ने अपने पैर पसारे हैं। इसमें भारत भी अछूता नहीं रहा। शुरू में ऐसा लग रहा था कि भारत में इसकी रफ्तार और इसका असर काफी कम है, क्योंकि जब पूरे विश्व की तालिका देखी जाती थी तो भारत कहीं 40-50 में नंबर पर दिखाई देता था, अब इस दौड़ में भारत दूसरे स्थान पर पहुंच गया है और स्थिति को देखते हुए यह कहना भी कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि भारत इस मामले में दुनिया की तालिका में एक नंबर पर आ जाएगा। जिस प्रकार ओलंपिक में पदक तालिका दिखाई जाती है, उसी प्रकार आजकल कोरोना में पूरी दुनिया के देशों की भी तालिका दिखाई जा रही है। इस दौड़ में अमेरिका सबसे आगे है। इसका भी कारण यह हो सकता है कि वहां जांच इत्यादि की सुविधाएं बाकी देशों से कहीं अच्छी है। यदि हम भारत की बात करें तो कोरोना महामारी के समय हमारे देश में ऑनलाइन शिक्षा का एक नया ढांचा खड़ा हुआ जो अभी भी चल रहा है। सभी सरकारें देश में कोरोना से निपटने के लिए अपने-अपने प्रबंध कर रही हैं। उसी प्रकार शिक्षा विभाग भी कोरोना के समय बच्चों के नुकसान की भरपाई करने के लिए ऑनलाइन शिक्षा का सहारा ले रहा है। यदि सरकारी स्कूल के छोटे व गरीब बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा का धरातल नापा जाए तो हमें यह देखने को मिलेगा की वास्तविकता के धरातल पर गरीब और छोटे बच्चों की ऑनलाइन शिक्षा कहां तक स्टैंड कर रही है। सरकारी स्कूलों में पढऩे वाले अधिकतर बच्चे गरीब होते हैं, यह जगजाहिर है। गरीबी और ऑनलाइन शिक्षा दोनों विपरीत तो नहीं कही जा सकती, परंतु विपरीत के लगभग जरूर कही जा सकती हैं। जिन बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा दी जाती है, उनके अभिभावक ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित जानकारियां और सुविधाओं से लैस होते हैं। अर्थात उनके पास सुविधाएं होती हैं, परंतु गरीब बच्चों के पास न तो स्मार्टफोन होते हैं और ना ही उनके पास लैपटॉप होते हैं। यदि उन्हें पढ़ाने की बात आए तो उनके अभिभावक भी अनपढ़ या फिर जागरूक नहीं होते। बच्चे अपने आप पढ़ नहीं सकते या यूं कहें कि जिन बच्चों को हम मार्च से पहले यह कह रहे थे कि मोबाइल और बच्चों का कोई काम नहीं। छोटे बच्चों से मोबाइल को दूर रखने के लिए सभी डॉक्टर और सभी तरह के सामाजिक शिक्षक भी यही सलाह देते थे कि छोटे बच्चों के पास मोबाइल नहीं होना चाहिए। मोबाइल से बच्चों को फलां-फलां नुकसान हो सकते हैं, परंतु अब यह बीते जमाने की बात हो गई है। अब कोई भी सामाजिक शिक्षक यह नहीं कहता कि छोटे बच्चों के हाथ में मोबाइल दिया जाना चाहिए या नहीं दिया जाना चाहिए। अब बस ऑनलाइन शिक्षा की भागदौड़ और इसमें आगे बढऩे और अपने आप को अपडेट दिखाने की भी होड़ लगी हुई है। जैसा की अभी जिक्र किया है कि मजदूर तबके के बच्चों के पास ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित साधनों का अभाव होता है, वह इन साधनों को मुहैया नहीं करवा पाते। जिससे कि इनकी ऑनलाइन शिक्षा नकारात्मक रूप से प्रभावित होती है। अर्थात यह बच्चे केवल स्कूल में ही पढ़ सकते हैं, इन्हें ऑनलाइन शिक्षा या मोबाइल या व्हाट्सएप के जरिए जो काम भेजा जाता है, ये उस काम को करने में सक्षम नहीं हो पाते। इनके अभिभावकों को मजदूरी करने के लिए बाहर जाना पड़ता है और जिनके बच्चे मां-बाप से दूर रहते हैं। वे कैसे इस प्रकार की शिक्षा को प्राप्त कर सकते हैं। सरकारी स्कूलों के शिक्षक अपने बच्चों को जब यह कहते हैं कि वे अपने माता-पिता को स्कूल बुला कर लाए तो माता-पिता को स्कूल पहुंचने में जब एक महीना या उससे भी अधिक समय लग जाता है तो उस प्रकार के माता-पिता से यह कैसे उम्मीद की जा सकती है कि वह अपने बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा भी दे सकते हैं। इसी प्रकार गरीबों में या गरीबों के बच्चों में जागरूकता की भी कमी होती है, क्योंकि इक_े घरों की पूरी बस्तियों में जागरूकता नहीं होती। यदि होती भी है तो उसका प्रतिशत माइनस में ही मिलता है तो ऑनलाइन शिक्षा की सुविधा इन बच्चों को भी नहीं मिल पाती। छोटे बच्चे ऑनलाइन शिक्षा में अपने आप को रूचि पूर्ण तरीके से शामिल नहीं कर पाते। यदि ऑनलाइन शिक्षा के मामले में सरकार जागरूक है या सरकार वास्तव में इस प्रकार की शिक्षा देना चाहती है तो यह शिक्षा कुछ बड़े बच्चों के लिए उपयोगी जरूर हो सकती है। यदि उनके पास ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित मोबाइल लैपटॉप या अन्य वस्तुएं हो और जिनको ऑपरेट करने वाले उनके पास मौजूद हो। ऑपरेटर बच्चों को उनके काम में उन बच्चों की मदद करें और बच्चे भी उसमें शामिल हो। नई शिक्षा नीति और शिक्षा का अधिकार भी यही कहता है कि बच्चों को शिक्षा से वंचित नहीं किया जा सकता, परंतु इस प्रकार जबरदस्ती या असंभव को संभव करने का काम भी क्या अच्छा परिणाम ला सकता है, यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता। यदि सरकार वास्तव में इस प्रकार का प्रयास करना चाहती है तो बच्चों की सुविधाओं की कमी को पूरा किया जाना प्रथम कार्य बनता है। जिस पर अभी तक कोई भी ध्यान नहीं दिया गया है। अर्थात बच्चों को ऑनलाइन शिक्षा से संबंधित है कोई सुविधा नहीं दी गई है।
विनोद रोहिल्ला, शिक्षक
लेखक पेशे से सरकारी स्कूल के शिक्षक हैं।