सालाना उर्स पर पहली चदर गढ़ी ब्राह्मणान की ओर से पेश की जाती है. सभी धर्मों के लोग यहां आकर मन्नत मांगते हैं
रणबीर सिंह, रोहिल्ला, सोनीपत। सोनीपत एक प्राचीन नगर है, यहां के ओल्ड डीसी रोड पर मामा-भांजा की दरगाह का इतिहास बहुत ही रोचक है। दिल्ली के नजदीक सोनीपत की यह दरगाह हिन्दू-मुस्लिम एकता व आपसी प्यार की प्रतीक माना जाती है। आज से सैकड़ों साल पहले दरगाह के पास एक कुटिया में शहर के नजदीक गांव गढी ब्राह्मणान का एक बूढा पंडित रहता था और पूजा करता था। एक दिन एक फकीर यहां पहुंचा और पंडित से कुटिया परिसर मैं शरीर त्यागने की इच्छा रखी और साथ ही यह भी कहा कि मेरे भांजे को रोतहक से बुलवा दो। वह पंडित बूढा था उसे ठीक से दिखाई भी नहीं देता था। पंडित ने लाचारी जताई तो फकीर ने कहा कि अपने हाथों से अपनी आखें को छूवों। बताते हैं जैसे ही पंडित ने अपनी आंखों को हाथ लगाया, उसकी आखों की रोशनी ठीक हो गई। यह चमत्कार होने के बाद पुजारी रोहतक गया और फकीर के भांजे को साथ लेकर लौटा। तब फकीर ने पंडित से वरदान मांगने को कहा। तब पंडित ने वरदान मांगते हुए कहा कि लोगों की भलाई के लिए यहां से बहने वाली यमुना का बहाव मोड़ दो, आज भी यमुना नदी सोनीपत से दूर ही बहती है और दूसरा ये की तुम्हारी इस दरगाह पर गढी ब्राह्मण के पंडित ही पहली चादर चढाएंगे। आज भी इस दरगाह पर पहली चादर गढी ब्राह्मण के पंडित चढाते हैं। बाबा की मजार पर आस्था की ज्योत जलती रहती है। फकीर के भांजे ने भी यहां पर ही आखरी सांस ली। कुटिया की जगह बन गई मामा-भांजे की यह मजार। यह दरगाह आपसी भाईचारे की मिसाल बन गई। तब से लेकर अब तक सभी धर्मों के लोग यहां आकर मन्नत मांगे हैं। यहां पर वर्ष में एक बार सालाना उर्स व वार्षिक मोहरम मनाया जाता है अब इस स्थान को पुजारी के तौर पर मोबिन अलवी व उनके भाई देखरेख करते हैं।
वहीं मामा-भांजा की दरगाह के दूसरी ओर आल इंडिया सूफी संत मिलन के संस्थापक सूफी रसीद मियां एवं सूफी मून्ना मियां की मजार बनाई गई है। मजार की गद्दी सूफी साहिल खान संभाल रहे हैं। सूफी रसीद मियां, सेवक आश मोहम्मद, श्रद्धालु दीपक कुमार व सेवक फरीद खान ने बताया कि मामा-भांजा की दरगाह पर उर्स पर पहली चादर गढ़ी ब्राह्मणान गांव की ओर से पेश की जाती है। उसके बाद आल इंडिया सूफी संत की तरफ से चादर चढाई जाती है। इसके बाद मामा-भांजा दरगाह पर आने वाले श्रद्धालु चदर चढ़ाते हैं। उन्होंने बताया कि हर वीरवार को मामा-भांजा दरगाह पर हर समुदाय से लोग आकर ज्योत लगाकर प्रसाद चढ़ाते हैं और दरगाह पर मत्था टेक कर मन्नते मांगते हैं। उन्होंने कहा कि यहां पर आकर जो श्रद्धालु सच्चे मन से मन्नत मांगता है उसकी मुराद पुरी होती है। मामा-भांजा की दरगाह पर सोनीपत व दूर-दराज के क्षेत्रों से भी श्रद्धालु ज्योत लगाने व प्रसाद बांटने आते हैं। यह दरगाह हिन्दू-मुस्लिम एकता का एक जीता जागता उदाहरण है। सालाना उर्स पर बहुत शानदार कार्यक्रम आयोजित होता है। जिसमें दूर-दराज से काफी संख्या मेंं श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस मौके पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। जिसमें आसपास के अलावा दूर दराज के लोग प्रसाद ग्रहण करते हैं।