लेखक : जितेन्द्र कुमार शर्मा, एम.ए. (यूऑफ़टी), पीएचडी (यूनिवर्सटी ऑफ़ टोरंटो, कनाडा), टीडीआई सिटी, कुंडली, सोनीपत के अपने विचार है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला को विश्वास है कि हरियाणा विधानसभा चुनाव में पार्टी की जीत होगी। इनेलो में विभाजन और लोकसभा चुनाव में राज्य की सभी दस सीटों पर हारने के बाद भी उनका कहना है कि विधानसभा चुनाव में इनेलो की जीत होगी और पार्टी सत्ता में आएगी। उनका ये दावा कहां तक सही है यह तो समय ही बताएगा और वह समय दूर भी नहीं है। फिलहाल तो हमें यह समझना है कि इस दावे में कितना दम है। ओमप्रकाश चौटाला अनुभवी नेता हैं और अपने पिता चौधरी देवी लाल की तरह हरियाणा के अधिकतम नेता रह चुके हैं और आज भी उनका राजनैतिक कद दूसरे नेताओं के मुकाबले में काफी ऊंचा है। इनेलो के उच्चतम नेता ने यह भी कहा कि उनके कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में हार से भी निराश नहीं हैं और भाजपा कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में जीतने के बाद भी उत्साहित नहीं हैं। उनके अनुसार भाजपा में दोबारा केंद्र सरकार बनाने के बाद कोई उत्साह दिखाई नहीं दे रहा है। उनके इस वर्णन में कुछ तो सच्चाई है। बीजेपी की संसद विजय मोदी-अमित शाह की विजय है और इस बात को दिन रात दोहराया भी जा रहा है। कार्यकर्ता तो क्या जीतने वाले बीजेपी सांसद भी अपनी विजय को अपनी नहीं कह पा रहे हैं। रही बीजेपी की बात तो बीजेपी को हरियाणा में लाने वाले चौटाला ही हैं और बीजेपी का वर्चस्व यदि उन्होंने बढ़ाया है तो उसे घटा भी सकते हैं। इसमें किसी को शक्क नहीं होना चाहिए कि यदि हरियाणा में कोई रीजनल पार्टी अथवा क्षेत्रीये राजनैतिक शक्ति है तो वह इनेलो ही है। बीजेपी और कांग्रेस राष्ट्रीय पार्टी हैं और हरियाणा में उनकी शाखायें हरियाणा के ख़ास हितों को केवल राष्ट्रीय धर्भ में ही पहचान और समझ सकती हैं। आम आदमी पार्टी और जाननायक जनता पार्टी हरियाणा में अभी लोगों के बीच में साख नहीं बना पाई हैं। बीजेपी को इन पार्टियों का बहुत लाभ है क्योंंकि यह इनेलो को नुक्सान पहुंचाती हैं और खुद कोई चुनावी फायदा उठा नहीं सकती। दुष्यंत चौटाला लायक हैं और संसद में उन्होंने अच्छा काम भी किया है। ऐसा व्यक्ति किसी भी पार्टी में हो देश की राजनीती में बहुत योगदान कर सकता है। वे बीजेपी में शामिल हो जाएं तो अपने निजी राजनैतिक अस्तितिव को भी बचा सकेंगे और हरियाणा और देश के हित्त में काम भी कर सकेंगे। भाजपा को इस समय अच्छे जाट लीडरों की बहुत ज़रुरत है। चौधरी वीरेंद्र सिंह की तरह वह अच्छी शर्तों पर बीजेपी में जा सकते हैं और भविष्य में चीफ मिनिस्टर भी बन सकते हैं, क्या पता 2019 में ही। जब तक इनेलो है, उनकी जजपार्टी का कोई भविष्य नहीं लगता। राज कुमार सैनी की लोकतंत्र सुरक्षा पार्टी बसपा से गठबंधन टूट जाने के बाद मिट गई है, लेकिन जिस मंच और कारणों से यह पार्टी अस्तित्व में आयी थी वे अभी भी जिन्दा हैं। भाजपा उनका लाभ उठा रही है और इनेलो बहुत नुक्सान उठा रही है। जाट आंदोलन की छाया यह साफ़ हो चुका है कि जाट आंदोलन कांग्रेस की शह पर उग्र और हिंसात्मक हुआ था। लेकिन इसका चुनावी खामियाज़ा कांग्रेस और इनेलो दोनों को ही भुगतना पड़ा है। इनेलो के पंजाबी वोट टूट गए और बीजेपी को मिल गए। बीजेपी ने ब्राह्मणों को जाटों के प्रति 35 जातों के रोष का चिन्ह बना लिया और बिना किसी राजनितिक लाभ के ब्राह्मण मोदी-अमित शाह की राजनीती का शिकार बन गए। रमेश कौशिक को सोनीपत से और अरविन्द शर्मा को रोहतक से खड़ा कर के मोदी-अमित शाह ने खेल खेला था। दोनों ब्राह्मण प्रतियाशी हुड्डा और उनके बेटे दीपेंद्र के सामने बहुत हल्के थे और यदि जाट वोट ना बटता और एंटी-जाट फीलिंग्स को बीजेपी ने ना भुनाया होता तो दोनों ब्राह्मणों की हार निश्चित थी! ये दोनों सांसद मोदी-अमित शाह के नीचे हरियाणा और ब्राह्मणों के लिए क्या कर पाएंगे? इस सवाल का जवाब हर हरियाणवीं जानता है। हां अभय सिंह चौटाला के लिए यह बड़ी चुनौती है कि ब्राह्मण वोटरों को अपने पक्ष में कैसे लाया जाए। ब्राह्मणों के लिए भी यह सोचने का विषय है कि ज़ात-पात के ज़हर को कैसे मिटाया जाए और जाट राजनीती में हिस्सेदारी बनाकर सारे समाज और अपनी जाती के हितों को कैसे बढ़ाया जाए। इनलो रीजनल फ़ोर्स का हिस्सा कैसे बना जाए। यह समझने की बात है कि हरियाणा विधान सभा चुनाव 2019 बीजेपी नहीं बल्कि मोदी-अमित शाह लड़ेंगे और इनलो को सत्ता में लाने का सारा भार अभय चौटाला पर होगा। इनेलो राष्ट्रीय अध्यक्ष ओमप्रकाश चौटाला ने अपनी पैरोल के दौरान इनेलो संगठन को नया रूप दिया है। इनेलो विधायक दल के नेता अभय सिंह चौटाला को इनेलो का प्रधान महासचिव बनाया है। चुनाव से पहले उनको इनेलो की कमियों का सही आंकलन करना है और इनेलो को सत्ता में लाने के लिए सब साधन जुटाने हैं और प्रयत्न भी करने हैं। 2019 के चुणाव में बीजेपी को हरियाणा में उम्मीद से अधिक सफलता के क्या कारण रहे और किस तरह इन कमियों से निपटा जा सकता है अभय चौटाला की तत्काल प्राथमिकता होगी। अभय सिंह चौटाला कौनसी बड़ी भूल कर सकते हैं? चंडीगढ़ से प्रकाशित जून 16, 2019 को एक खबर आई कि इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) ने फिर से महागठबंधन का प्रस्ताव किया है। इनेलो के प्रधान महासचिव अभय सिंह चौटाला ने कहा कि जब तक मजबूत विकल्प के रूप में आमजन को तीसरा मोर्चा नहीं मिलता, तब तक भाजपा को रोकना मुश्किल है। गठबंधन की दल-दल में फंसना अभय सिंह चौटाला की सबसे बड़ी भूल होगी। गठबंधन शब्द ही इतना बदनाम हो चुका है कि आमजन ऐसे विकल्प की तरफ देखना भी नहीं चाहता और इसमें आम आदमी के खिलाफ नेताओं की सांठ गांठ और साजि़श देखता है। गठबंधन का मतलब होगा कि इनेलो क्षेत्रीय शक्ति नहीं है। ओडिशा में बीजू जनता दल अकेले अपने दम ख़म पर चुनाव लड़ता है। इंडियन नेशनल लोकदल (इनेलो) भी बीजेडी की तरह जनता पार्टी का बचा हुआ अंश है और दोनों के लिए जनता में उनके लिए अच्छी भावना है। पुरानी यादों के कारण इनेलो के सत्ता से 15 वर्ष बाहर रहने के कारण कुछ दबी हुई सी सहानुभूति भी है। गठबंधन की बजाये हरियाणवीं चाहेंगे कि चौटाला परिवार एक हो जाये और अपने दम पर इलेक्शन लड़े और रीजनल पार्टी के तौर पर सत्ता में आये। नरेंद्र मोदी -अमित शाह के जय-जयकारों के बीच इनेलो और चौटाला परिवार पर इतना लम्बा लेख लिखना कुछ अट्ट-पट्टा अवश्य लगता है, लेकिन लोकतंत्र की परम्पराओं को हरियाणा में जि़ंदा रखने के लिए अपने राज्य की दशा और दिशा को देखना, समझना और अपने वोट का ठीक इस्तेमाल करना हम सबका अधिकार और फज़ऱ् है। इसीलिए यह विचार आपके समक्ष विस्तार पूर्वक रखे गए हैं।
लेखक : जितेन्द्र कुमार शर्मा, एम.ए. (यूऑफ़टी), पीएचडी (यूनिवर्सटी ऑफ़ टोरंटो, कनाडा), टीडीआई सिटी, कुंडली, सोनीपत के अपने विचार है।