लक्ष्मी बाई, भगत सिंह, शिवाजी व पृथ्वीराज चौहान की पगड़ी बनी आकर्षण का केन्द्र
रणबीर रोहिल्ला, कुरुक्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती के अवसर पर विरासत हेरिटेज विलेज जी.टी. रोड मसाना में आयोजित हरियाणा सांस्कृतिक दर्शन एवं हस्तशिल्प कार्यशाला में हरियाणा की पगड़ी के इतिहास को प्रदर्शित किया गया है। उल्लेखनीय है कि लोकजीवन में पगड़ी का सर्वोच्च स्थान है। लोकजीवन में पगड़ी को पगड़ी को पग, पाग, पग्गड़, पगड़ी, पगमंडासा, साफा, पेचा, फेंटा, खण्डवा, खण्डका, मंडासा, तुर्रा, मंडासी, साफा, रूमालियो, परणा, शीशकाय, जालक, मुरैठा, मुकुट, कनटोपा, पेचा, मदील, मोलिया और चिंदी आदि नामों से जाना जाता है, जबकि साहित्य में पगड़ी को रूमालियो, परणा, आदि नामों से जाना जाता है।
वास्तव में पगड़ी का मूल ध्येय शरीर के ऊपरी भाग को सर्दी, गर्मी, धूप, लू, वर्षा आदि विपदाओं से सुरक्षित रखना रहा है, किंतु धीरे-धीरे इसे मान और सम्मान के प्रतीक के साथ जोड़ दिया गया। लोकजीवन में पगड़ी की विशेष महत्ता है। पगड़ी की परम्परा का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। पगड़ी जहां एक ओर लोक सांस्कृतिक परम्पराओं से जुड़ी हुई है, वहीं पर सामाजिक सरोकारों से भी इसका गहरा नाता है।
विरासत हेरिटेज विलेज में भारत की अलग-अलग पगडिय़ों के रंग देखने को मिल रहे हैं। विरासत में पगड़ी प्रदर्शनी में राजस्थानी पगड़ी, महाराजा अकबर की पगड़ी, लक्ष्मी बाई की पगड़ी, पंजाबी पगड़ी, मराठी पगड़ी, भगत सिंह पगड़ी, पठानी पगड़ी, शिवाजी पगड़ी, पृथ्वीराज चौहान पगड़ी, गंगाधर तिलक पगड़ी, हिमाचली पगड़ी, मुल्लादीन पगड़ी, शेख पगड़ी, बीरबल पगड़ी, मुनीम पगड़ी, हरियाणा की बृज, मेवात, खादर, बांगर, बागड़ की पगड़ी विशेष रूप से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुई है। इसके साथ ही पगड़ी बंधवाओ, फोटो खिंचवाओ आयोजन के माध्यम से भी हरियाणवी पगड़ी का प्रचार-प्रसार हो रहा है। विरासत हेरिटेज विलेज के स्वागत कक्ष में सभी का पगड़ी बांधकर स्वागत किया जाता है। हरियाणा की पगड़ी विशेष रूप से यहां पर प्रदर्शित की गई है। युवाओं में भी हरियाणवी पगड़ी की लोकप्रियता देखने को मिल रही है।
एन.आर.आई. नरेन्द्र जोशी का विरासत में हुआ भव्य स्वागत
कुरुक्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती के अवसर पर विरासत हेरिटेज विलेज जी.टी. रोड मसाना में आयोजित हरियाणा सांस्कृतिक दर्शन एवं हस्तशिल्प कार्यशाला का गत दिवस अमेरिका में रहने वाले हरियाणा के एनआरआई नरेन्द्र जोशी ने अवलोकन किया। इस अवसर पर उनका लोक सांस्कृतिक तरीके से भव्य स्वागत किया गया। उनको पगड़ी पहनाई गई तथा उन्होंने हरियाणा की लोककला प्रदर्शनी का अलवोकन करते हुए कहा कि आने वाले दिनों में विरासत हेरिटेज विलेज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हरियाणा की सांस्कृतिक विरासत को स्थापित करेगा। उन्होंने हरियाणवी कलाकारों के साथ खूब मस्ती की तथा पुरस्कार स्वरूप उनको दस हजार रुपये की ईनाम राशि भी प्रदान की। इस मौके पर विरासत की ओर से डॉ. महासिंह पूनिया ने नरेन्द्र जोशी को सांझी का स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। इस मौके पर पत्रकार राजेश चौहान, डॉ. आबिद अली, डॉ. सुशील टाया, डॉ. प्रदीप राय सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
रामकेश जीवनपूरिया ने विरासत विलेज में मचाई धूम
कुरुक्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती के अवसर पर विरासत हेरिटेज विलेज जी.टी. रोड मसाना में आयोजित हरियाणा सांस्कृतिक दर्शन एवं हस्तशिल्प कार्यशाला में हरियाणा के जाने-माने कलाकार रामकेश जीवनपूरिया ने अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से हरियाणवी लोकजीवन के ऐसे रंग बिखेरे के सभी उनके गीतों पर झूमने लगे। हट ज्या ताऊ पाच्छै नै गीत के लेखक रामकेश ने पहले वाली बात रही ना तथा एक बै तो यार मनै बचपन म्है जाण दे गीत पर सभी कलाकार एवं कार्यशाला में भाग लेने वाली महिलाएं मंत्रमुग्ध हो उठी।
इस अवसर पर रामकेश जीवनपूरिया ने विरासत में सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करने के पश्चात कहा कि हरियाणवी संस्कृति को जिस सलीके से विरासत हेरिटेज विलेज में सांस्कृतिक प्रदर्शनी के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है वह अपने आप में अनूठा प्रयास है। हरियाणा के लोक कलाकारों के लिए विरासत आने वाले दिनों में एक ऐसा स्थान बनेगा जिसकी पहचान पूरे विश्व में होगी। विरासत के मंच से हरियाणवी कला के संरक्षण की जो मुहिम छेड़ी गई है उसके परिणाम सकारात्मक होंगे। हरियाणा की युवा पीढ़ी हरियाणवी विरासत से जुडक़र अपने इतिहास को जान सकती है। यहां पर प्रदर्शनी सभी को आकर्षित कर रही है। इस मौके पर विरासत की ओर से डॉ. महासिंह पूनिया ने रामकेश जीवनपूरिया को स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया।
हरियाणवी फुलकारी को संरक्षित करेगा विरासत
कुरुक्षेत्र: अंतर्राष्ट्रीय गीता जयंती के अवसर पर विरासत हेरिटेज विलेज जी.टी. रोड मसाना में आयोजित हरियाणा सांस्कृतिक दर्शन एवं हस्तशिल्प कार्यशाला में ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्यम से प्रदेश भर की महिला कलाकार भाग ले रही हैं। महिलाओं को विषय-विशेषज्ञ हरियाणा की फुलकारी के विषय में सूक्ष्म पहलुओं की जानकारी दे रहे हैं। इस कड़ी में डॉ. महासिंह पूनिया, डॉ. रणबीर सिंह, एनआईडी की प्रो. डॉ. नीतू सिंह ने ग्रामीण महिलाओं को हरियाणा की फुलकारी के अलग-अलग स्वरूपों की जानकारी दी। उल्लेखनीय है कि हरियाणवी महिलाओं का हरियाणा की फुलकारी के विकास में जो योगदान रहा है उसको किसी भी सूरत में भुलाया नहीं जा सकता।
पंजाब की फुलकारी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुकी है, किन्तु हरियाणवी कसीदाकारी एवं फुलकारी को व्यवसायिक स्वरूप प्रदान नहीं किया जा सका। यह एक चिन्ता का विषय है। वास्तव में हरियाणवी कसीदाकारी पंजाब की फुलकारी से बिल्कुल भिन्न है। हरियाणवी महिलाओं द्वारा लोक वेशभूषाओं पर उकेरे गए कसीदाकारी से डिजाईन पंजाब से बिल्कुल भिन्न हैं। इनमें हरियाणवी जीवन की महक आती है। फूल, पत्तियां, मोर, गेहूं की बालियां, किसानी संस्कृति के विविध अंग, पशु-पक्षी सभी हरियाणवी कसीदाकारी एवं फुलकारी की महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं। हरियाणवी संस्कृति में फुलकारी की विशेष महत्ता है। लोकजीवन में ग्रामीण महिलाएं पारम्परिक रूप से लोक परिधानों पर हाथ की कढ़ाई एवं फुलकारी का काम करती रही हैं।
हाथ की कढ़ाई में ग्रामीण महिलाएं लह, छायमा, वायल, चूंदड़ी, खारा, घाघरा, दुकानिया, फरगल, टोपला, थैला, बटुआ, आंगी आदि पर कढ़ाई का काम करती रही हैं। हरियाणा पंजाब का हिस्सा रहा है। पंजाब से लगते भू-भाग यमुनानगर, कुरुक्षेत्र, कैथल, फतेहाबाद, सिरसा आदि जिलों में हरियाणा की पंजाबी संस्कृति का विविधआयामी स्वरूप देखने को मिलता है। महिलाओं द्वारा निकाली जाने वाली फुलकारियां, बाग, पंजाबी संस्कृति के वो अंश हैं जो हस्त कला की सांस्कृतिक परम्परा को समृद्ध करते रहे हैं। वर्तमान दौर में हस्त कला का यह नमूना बिछुड़ता जा रहा है। महिलाओं द्वारा निकाली जाने वाली फुलकारी, पेच्चा, बाग, पराठा लोककला का वो नमूना है जो अतीत के इतिहास को अपने अंदर समेटे हुए है। अतीत के झरोखे से जब हम इस कलात्मक स्वरूप के इतिहास को देखते हैं तो इसकी परम्परा पेशावर, लाहौर, पाकिस्तान स्थित पंजाब तक जा सिमटती है।
वास्तव में हस्तकला का यह स्वरूप पंजाबी संस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। हरियाणा रचते-बसते सिख भाईयों के परिवार इस कला का सरंक्षण करते रहे हैं। महिलाओं द्वारा हाथ से किया जाने वाला यह कार्य वास्तव में बहुत ही संजीदगी एवं कला के प्रति समर्पण की अभिव्यक्ति का प्रतीक है। सूंई एवं डामची से तैयार किया गया यह बाग परम्परा अनेक लोक उत्सवों का परिचायक भी रही है। हरियाणा में पीलिया, सौंपली, दतई, लैह, छायमा, दुकानिया आदि भी इसी परम्परा का स्वरूप हैं। कार्यशाला में अम्बाला, हिसार, महेन्द्रगढ़, जींद, यमुनानगर, सिरसा, रोहतक की महिलाओं का प्रशिक्षण कर हरियाणवी फुलकारी की टीमें तैयार की गई। आने वाले दिनों में इन टीमों द्वारा तैयार किए गए डिजाईन विरासत के माध्यम से दिल्ली में होने वाली प्रदर्शनी में प्रदर्शित किए जाएंगे।
विरासत में चटनी बनाओ प्रतियोगिता में सुखविन्द्र रही प्रथम
अंतर्राष्ट्रीय गीता महोत्सव के अवसर पर विरासत में प्रतिदिन एक इवेंट आयोजित किया जा रहा है। जिसके माध्यम से हरियाणा की लोक सांस्कृतिक एवं लोक पारम्परिक विषय-वस्तु एवं चीजों को शामिल किया जाता है। आज विरासत में हरियाणवी महिलाओं की चटनी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें सभी महिलाओं ने कुंडी सोट्टे के साथ प्याज, पूदीने, धनिया, मरूए, टमाटर की चटनियां बनाई। चटनी प्रतियोगिता में लक्ष्मी पपोसा, सरोज पपोसा, वीरमति पपोसा, उषा शर्मा अंबाला, संतोष, सरिता समालखा, रेनू दुहन जींद ने भाग लिया। चटनी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान पर करनाल की सुखविंदर रही। सुखविंदर की चटनी सबसे स्वादिष्ट पाई गई। विरासत की ओर से विजेता को 11 सौ रुपये का पुरस्कार दिया गया। इस अवसर पर निर्णायक मंडल के सदस्यों के रूप में डॉ. रणबीर सिंह, डॉ. महासिंह पूनिया ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।