जिंदगी का आखरी ठिकाना, ईश्वर का घर…

जिंदगी का आखरी ठिकाना, ईश्वर का घर…

  • कुछ अच्छा कर मुसाफिर, किसी के घर खाली हाथ नहीं जाते…
  • कहते हैं जिंदगी का आखरी ठिकाना, ईश्वर का घर
  • अस्थियों को कनखल में मंत्रों उच्चारण के साथ प्रवाहित किया
  • एक सौ से ज्यादा अनजान बेसहारा इंसानों की अस्तियों को हरिद्वार गंगा मैय्या में प्रवाहित किया
  • शिव मुक्तिधाम सेक्टर 14-15 में आने वाली अनजान बेसहारा अस्थियों को हरिद्वार में गंगा मैय्या में किया प्रवाहित
  • शिव मुक्ति धाम सेक्टर 14-15 के पदाधिकारियों ने किया नेक कार्य

रणबीर रोहिल्ला, सोनीपत। जन्म होने पर बटने वाली मिठाई से शुरू हुआ, जिन्दगी का यह खेल, श्राद्ध की खीर हलवा पुरी पर आकर खत्म हो जाता है। यही जीवन की कड़वी सच्चाई है। बड़े दुर्भाग्य की बात है कि इंसान इन दोनों मौको पर इन चीजों को नहीं खा पाता। कभी आपने सोचा कि जिंदगी का क्या है? नहीं ना… बस इस संसार में आये खाया पिया और आखिर में नहाकर चल दिये। ये काम तो संसार में आया हर जीव-जंतु करता है। फिर इंसान में ओर जानवर में क्या अंतर रह गया। दोस्तों हम किस बात पर इतराते हैं, किस बात घमंड करते हैं। एक न एक दिन इस मानव देह से मुक्ति पाने के लिए मुक्तिधाम में आकर पंचतत्व में विलीन हो जाना है। जिसने जन्म लिया है, उसका जाना निश्चित है। यही जीवन की सच्चाई है।

आया है सो जाएगा, राजा रंक फकीर। एक सिहासन चढ़ी चले एक बंधे ज़ंजीर ।। दोस्तो ! कहते हैं जिंदगी का आखरी ठिकाना, ईश्वर का घर है। कुछ अच्छा कर मुसाफिर, किसी के घर खाली हाथ नहीं जाते। जी हां जितनी खूब सूरत ये पंक्तियां है, उससे ज्यादा खुब सूरत वे इंसान होते हैं, जो दूसरों की मदद के लिए हमेशा आगे रहते हैं। ऐसे ही कई नेक कार्यों में जुटा है शिव मुक्तिधाम। जी हां शिव मुक्ति धाम सेक्टर 14-15 के महासचिव डा. डीएल मल्होत्रा ने बताया कि हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी परंपरा को निभाते हुए संस्था के पदाधिकारी, सेवादार अनजान बेसहारा इंसानों के शवों के दाह संस्कार के बाद अस्थियों को प्रवाहित करने हरिद्वार जा रहे हैं।

शिव मुक्तिधाम के पदाधिकारियों ने बताया कि सबकी सहमति, सहयोग से पहले हम सब अस्थियों को हरिद्वार के कनखल में मंत्रों उच्चारण के साथ प्रवाहित करते हैं। फिर गंगा मैय्या की गोद में बैठ कर स्नान करते हैं और फिर पूरे विधि विधान से हवन-यज्ञ करने के बाद मां गंगा से प्रार्थना करते हैं कि यह अस्थियां जिस किसी भी हों उन्हें अपने चरणों में स्थान दें। यह नेक कार्य हर वर्ष इसी तरह पूरे विधि विधान से किया जाता है। उन्होंने कहा कि हम इस परंपरा को हमेशा पहले की तरह आगे भी चलाते रहेंगे। अबकी बार एक सौ से ज्यादा अनजान बेसहारा इंसानों की अस्तियों को हरिद्वार मैय्या गंगा में प्रवाहित किया है, ताकि उन्हें मुक्ति मिल सके।

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