बिना अध्यापकों के बच्चों को किस प्रकार की शिक्षा दे रही प्रदेश सरकार
शिक्षा का गिरता स्तर आखिर जिम्मेदार कौन?
गणित और विज्ञान के अध्यापक में से स्कूल को एक ही विषय का अध्यापक मिलेगा
गणित का जो अध्यापक स्वयं दसवीं कक्षा तक विज्ञान पढ़ा हो क्या वो विज्ञान सही ढ़ंग से पढा पा रहा है
बहुत से स्कूलों में दोनों विषयों की पढ़ाई हो रही है प्रभावित
बहुत से अध्यापक नई तकनीक आनलाईन में नहीं है सक्षम
सांपला, महेश कौशिक। प्रदेश सरकार के मुखिया और उनका मंत्रीमंडल भले ही शिक्षा के सुधारों के लिए ढिंढोरा पीट रहे हो, लेकिन जमीनी स्तर पर ये स्थिती भयानक है। प्रदेश में हर रोज पात्र अध्यापक अपनी नौकरी के लिए धरना प्रदर्शन करते हो, लेकिन सरकार के पास तो ना उनकी बात सुनने का समय है और न ही उनकी जरूरत, क्योंकि सरकार ने अपनी योजना ही ऐसी ही बनाई है कि गणित और विज्ञान के विषयवार अध्यापक ही दोनों विषयों को पढ़ायेगें। यदि प्रदेश के सभी स्कूलों की बात करे तो प्रदेश में लगभग 6700 स्कूलों में गणित व विज्ञान के लगभग 5400 अध्यापक है।
ऐसे में स्पष्ट है कि प्रदेश के 1300 स्कूल ऐसे है, जिनमें गणित और विज्ञान जैसे महत्वपूर्ण विषयों के अध्यापक ही नहीं है। ऐसे में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की स्थिती क्या है इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है। आखिर इन सभी स्थितियों के पीछे क्या कारण है, शिक्षा के गिरते स्तर के कारण उसकी गुणवत्ता पर प्रश्न खड़ा होना लाजिमी है। लेकिन इस बात के जिम्मेदार कौन लोग है। इस ओर न तो राजनीतिक मंथन हो रहा और न ही सामाजिक चिंतन किया जा रहा है। बातें शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की अक्सर सुनने में आती है। किन्तु सुधार कहीं नजर नहीं आता।
शिक्षा के गिरते स्तर पर लंबी-लंबी बहस होती है। और अंत में उसके लिए शिक्षक को दोषी करार दिया जाता है। जो शिक्षक स्वयं उस शिक्षा का उत्पादन है और जहां तक संभव हो रहा है, मूल्यों, आदर्शों व सामाजिक उत्तर दायित्व के बोध को छात्रों में बनाये रखने का प्रयत्न कर रहा है। तमाम राजनीतिक दबावों के बावजूद। बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के साथ-साथ सभी सरकारी कार्य राष्ट्रीय कार्यक्रमों को पूरी कुशलता से करने वाला शिक्षक इतना अकर्मण्य और अयोग्य कैसे हो सकता है? हालांकि काफी हद तक यह बात सही है कि स्कूलों में कुछ शिक्षक पढ़ाते नहीं हैं।
स्कूल वक्त पर पहुंचते नहीं हैं। शिक्षक वैसा शिक्षण नहीं करते जो गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की श्रेणी में आता है। आये दिन किसी मुद्दे को लेकर हड़ताल पर चले जाना और स्कूलों की छुट्टी हो जाना आम हो गया है। शिक्षार्थी शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यालय जाते हैं, लेकिन वहां शिक्षक ही नदारद रहते हैं। ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता पर प्रश्न लगना लाजिमी है। आज इस बात पर भी गौर करना है कि जिन बच्चों की शिक्षा के बारे में सरकार गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा की बात कर रही है, वे बच्चे किस तबके से आते हैं? उनकी सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक, शैक्षिक स्थिति के साथ स्वास्थ्य की स्थिति क्या है?
क्या ये कारण इन बच्चों की शैक्षिक गुणवत्ता को प्रभावित कर रहे है? यदि हां तो फिर सरकार और उनके ये उच्च अधिकारी इस बारे में क्या सोचते हैं और क्या कर रहे हैं? आज यह स्पष्ट हो चुका है कि सरकारों की दोषपूर्ण शिक्षा नीति के साथ सरकारी विद्यालयों में बुनियादी सुविधाओं का भी अभाव है। वर्षभर शासकीय शिक्षकों से कई प्रकार के गैर शैक्षिक कार्य लिए जा रहे हैं, जिससे वे अपने छात्रों को पूरा समय नहीं दे पाते और उनके छात्र पढ़ाई में पिछड़ जाते हैं। लेकिन यह बात भी सही है कि बहुत से शिक्षक हैं, जो ईमानदारी से पढ़ा रहे हैं। उनके बच्चों में शैक्षिक गुणवत्ता की दक्षताएं हैं। फिर सभी शिक्षकों दोषी कैसे ठहराया जा सकता है।
तीन स्कूलों में दोनों विषयों के अध्यापक नहीं : खत्री
आज जब हमारे सवादंदाता ने सांपला खंड शिक्षा अधिकारी जितेंद्र खत्री से सरकारी स्कूलों में अध्यापकों की संख्या की बात की तो उन्होंने बताया कि सांपला खंड़ में वर्तमान में 32 स्कूल हैं, जहां दोनों विषयों के 29 अध्यापक है। तीन स्कूल ऐसे है जहां पर दोनों विषयों के अध्यापक नहीं है, अर्थात आधे स्कूलों में एक विषय का अध्यापक नहीं है।