पवित्र नगर उज्जयिनी
उज्जयिनी/उज्जैन की पवित्र नगरी मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से दक्षिण-पश्चिम मेें, पुण्य सलिला शिप्रा के निर्मल एवं मनोहर पूूर्वीय तट पर बसी हुई है। धार्मिक, पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक नगरी उज्जयिनी में नगर के दक्षिण-पश्चिम भू-भाग में शिप्रानदी के पूर्वी तट से कुछ ही अन्तर पर भगवान् महाकालेश्वर का विशाल मन्दिर स्थित है। इन्हीं महाकाल की गणना द्वादश ज्योतिर्लिंगो में की गई है, जो शिवपुराण में दिए गयेे द्वादश ज्योतिर्लिंग माहात्म्य से स्पष्ट हैै ।
सौराष्ट्र्रे सोमनाथं च श्रीशैलेमल्लिकार्जुनम्।
उज्जयिन्यां महाकालं डाकिन्यां भीमशं करम्।।
वैधनाथं चिताभूमै ओम्कार ममलेेश्वरम्।
सेतुबन्धेतुरामेशं नागेशं दारुकावने।।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबक गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं तु शिवालये।।
एतानि ज्योतिर्लिगानि प्रातरुत्थाय य: पठैत्।
जन्मान्तरं कृतं पापं स्मरणेन विनश्यति।।
उक्त द्वादश ज्योतिर्लिगों में महाकालेश्वर का प्रमुख स्थान है, यह अनेक प्रमाणों से स्पष्ट किया जा सकता है । पुराणों के अनुसार महाकाल को ज्योतिर्लिंग केे साथ-साथ समस्त मृत्युलोक (भूलोक) केे स्वामी (अधिपति) के रूप में भी स्वीकार किया गया है, लिखा है –
आकाशे तारक लिंग पाताले हाटकेश्वरम्।
मृत्युलोके महाकालं लिंगत्रंय नमोस्तुते।।
वर्ष के प्रमुुख पर्व एवं चल समारोह
श्रावण मास केे प्रति मास को बड़े ठाट-बाट एवं शासकीय बैन्ड के साथ भगवान का चल समारोह बाजार के प्रमुख मार्गो से होकर निकलता है। आस-पास ग्रामों से धर्मप्राण जनता सवारी देखने को उमड़ पड़ती है । इसी प्रकार आश्विन मास कृष्ण पक्ष में उमा सांझी महोत्सव का आयोजन आकर्षण का केन्द्र होता है, और शुक्ल पक्ष में विजया दशमी के दिन दशहरा मैदान तक भगवान को सवारी जाती है और वहाँ शमी वृक्ष का पूजन आदि होता है। इसके अलावा वैकुण्ठ 14 के रोज रात्रि में हरिहर भेंट के लिए भगवान महाकाल की सवारी गोपाल मंदिर में जाती है और वहाँ शिव को तुलसी और भगवान विष्णु को विल्व पत्र अर्पण किये जाते है। फाल्गुुण कृष्ण पक्ष पंचमी से महाशिरात्रि पर्यन्त महाकाल की नवरात्रि होती है, नित्य कथा एवं हरिकीर्तन के आयोजनों के साथ-साथ नित्य नवीन भगवान का श्रंृगार देखनेे योग्य होता है। महाकाल शब्द से ही काल (समय) का संकेत मिलता है। हमारी गणनाओं की समस्त इकाईयों की वाचनिकता (इकाई ..शंख दशशंख) के परेेे अनन्त काल केे रूप में महाकाल ही स्वयं सिध्द हैं। इसीलिए स्कन्द पुराण ने ‘‘कालचक्र प्रवर्तकों महाकाल: प्रतापन: ’’ देकर कालगणना (समय) के प्रवर्तक रूप मेें महाकाल को ही कालगणना का केन्द्र बिन्दु मानने के अन्य कारण भी हैं। अवंतिका को भारत का मध्य स्थान (नाभि क्षेत्र) माना है और उसमें भी महाकाल की स्थिति मणिपुर चक्र (नाभि) पर मानी है-
आज्ञा चक्र स्मृता काशी या बाला श्रुतिमूधीने।
स्वाधिष्ठानं स्मृता कांची मणिपूरमवन्तिका।।
नाभिदेशे महाकाल स्तन्नाम्ना तत्रवैहर: ।
– वराह पुराण
उपर्युक्त प्रमाण से स्पष्ट है। यही (मणिपुर चक्र) योगियों के लिये कुण्डलिनी जाग्रत करने की क्रिया योग के क्षेत्र में महत्वपूर्ण मानी गयी है, अत: मणिपुरचक्र पर स्थित भगवान्् महाकाल योगियों के लिये भी सिध्द स्थल हैै। इसी प्रकार भौगोलिक कर्क रेखा (कर्कवृत्त में) को भूमध्य रेखा यहीं उज्जयिनी में काटती है, इसलिये भी समय गणना की सूगमता इस स्थान को प्राप्त है।
क्षिप्रा तट :
क्षिप्रा एक महान पवित्र नदी है, इसमें स्नान-दान पुण्य का वर्णन अवन्तिखण्ड आदि अनेक पुराणों में भरा पड़ा है। अवन्ति खण्ड में लिखा है-
नास्ति वत्स महीपृष्ठे शिप्राया: सदृशीनदी,
यस्यास्तीरे क्षणान्मुक्ति: किंचिरात्सेवतेनवे।
इसके तटवर्ती प्रमुख 28 तीर्थ हैं जिनका आगे उल्लेख किया गया है। वैशाख मास प्रतिवर्ष स्नानार्थियों की तथा बाहरवें वर्ष में सिंहस्थ केे अवसर पर दोनों तटों पर मेला लगता है। ज्येेष्ठ मास में गंगा दशहरा के समय स्थान-स्थान पर गंगोत्सव का आयोजन होता है। कार्तिक पूर्णिमा से 15 दिन नदी के पश्चिम तट पर एक विशाल मेला (कार्तिक मेला के नाम से) आयोजित किया जाता है। क्षिप्रा के पश्चिम तट पर नागाओं का दश्र अखाड़ा है तथा पूर्व तट पर उश्रर में उदासियों का अखाड़ा है।
गोपाल मंदिर
सिंधिया वंश का प्रसिद्ध गोपाल मंदिर है। महारानी बायजाबाई सिन्धे द्वारा कराया गया था। मंदिर का शिखर संगमरमर की कलात्मक खुदाई के साथ बना हुआ है। मंदिर के अन्दर गोपाल कृष्ण, राधिका,शिव तथा स्वयं बायजाबाई सिन्धे की प्रतिमा है। यहाँ की सम्पूर्ण व्यवस्था ग्वालियर स्टेट के धार्मिक ट्रस्ट से की जाती है। मंदिर के अन्दर का द्वार बहुमूल्य रत्न पन्ना का बना हुआ हैं। कहा जाता है कि सिंधिया ने गजनी की लूट मेें प्राप्त धन यहाँ देवार्पण कर दिया था। जन्माष्टमी के समय यहाँ भजन कीर्तन एवं उत्सव का आयोजन किया जाता है।
भर्तृहरि गुुफा
कालिका मंदिर से निकलकर उश्रर की ओर लगभग 1 फर्लांग की दूरी पर क्षिप्रा नदी के सुनसान किनारे पर एक तवोपन है, जो भर्तृहरि की गुफा के नाम से जाना जाता है। यह जमीन के भीतर प्राचीन काल के गौरव एवं वैराम्य की साधना को अपनेे आप में छिपाये है। शहर से लगभग 2.5- 3 मील की दूूरी पर क्षिप्रा के पश्चिमोश्रर तट पर भैरवगढ़ में ‘कालभैरव’ का सुन्दर मंदिर है। काले पाषाण मेें बना हुआ भव्य द्वार देखनेे योग्य है। मंदिर प्रांगण में ही एक संकुुचित द्वार वाली छोटी गुुुफा है जिसमें भगवान शंकर की प्र्रतिमा विराजमान है। मार्गशीर्ष में भैरवाष्टमी के रोज यहाँ पूजन होती है, सवारी निकलती है और दर्शनार्थियों की भीड़ लग जाती हैं।
सद्धवट : भैरवगढ़ के निकट ही क्षिप्रातट पर यह पवित्र एवं ऐतेेहासिक स्थल स्थित है। प्रयाग में अक्षवट, नासिक में पंचवट, वृंदावन में वंशीपट तथा गया में गयावच का जो महत्व है वही उज्जैनी में सिद्धवट का महत्व है। कर्मकांड (उश्ररकमै) नागबलि नारायणबलि आदि केे लिये इस स्थान का विशेष फल कहा है वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को यहाँ मेेला लगता है।
अंकपात (सांदीपनि आश्रम): नगर केे उश्रर मेंं मंगलनाथ जानेे वाले मार्ग पर सांदीपनि आश्रम भारत की गौरव गाथ का एक स्वर्णिम पृष्ठ है। यही वह स्थल है, जहाँ गीता के अमर गायक योगेेश्वर श्रीकृष्ण ने बलराम सुदामा सहित महर्षि सांदीपनि से शिक्षा दीक्षा ली थी। इसी स्थल पर गोमती कुंड है, जहाँ भगवान अपनी पट्टी धोया करते थे, इसलिये यह क्षेत्र अंकपात नाम से विख्यात है।
मंगलनाथ
अंकपात से कुछ आगे जानेे क्षिप्रा तट पर महामंगलेश्वरका सुन्दर मंदिर बना हुआ है। अंवन्तिदेेशोöव तथा अवन्त्याँच कुजोजातो मगधेच हिमांशुन: के अनुसार अवन्ति मंगल की जन्म भूमि मानी गई है। प्रति मंगलवार एवं कौजी अमावस्या (मंगलवार युुक्त अमावस्या) को यहाँ दर्शनार्थियों का तांता लगा रहता है।
त्रिवेणी संगम
जहाँ क्षिप्रा-क्षाता का संगम हुुआ है इसे त्रिवेणी संगम के नाम से धर्मप्र्राण जनता जानती है। लिखा है-
यत्रशिप्रासरिच्छृष्टा-यत्र-क्षातासमा-गता
उभया: संगमोयत्रतत्रमुक्तिर्नसंशय:
शनि योगे यदाभावै जायतेे सर्बकामदा
तदास्नानंतदादानं श्रद्धांचैवतुकारयेत्।
शनैश्चरी अमावस के दिन क्षिप्रा क्षाता संगम पर स्नान-दान एवं श्राद्ध करने से मुक्ति प्र्राप्त होती है। यहीं संगमेश्वर एवं नवग्रह के मंदिर हैं। शनि युक्त अमावस को यहाँ दर्शनार्थियों की भीड़ लगी रहती है और एक विशाल मेला लग जाता है।
उज्जैन महाकुम्भ की स्नान तिथियां
चैत्र शुक्ल पूर्णिमा प्रथम शाही स्नान, वैशाख अमावस्या अक्षय तृतीया द्वितीय शाही स्नान, बैशाख शुक्ल तृतीय शाही स्नान