पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज, प्रत्येक रविवार और अमावस व पूर्णमासी को श्रद्धालु करते हैं स्नान
रणबीर सिंह रोहिल्ला, सोनीपत। शहर से 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित खेड़ी गुज्जर के टीले पर सिद्धपीठ तीर्थ सतकुंभा धाम सतकुंभ है। लगभग 800 साल पहले बसे खेड़ी गज्जर के तीर्थ स्थल को पुरातत्व विभाग के रिकार्ड में दर्ज किया गया है। सतकुंभ मेले में आसपास क्षेत्र के गांवों के अलावा दूर-दराज के क्षेत्रों से भी लोग यहां दर्शन और स्नान करने के लिए आते हैं।
खेड़ी गुज्जर से म्याना, कोटा, सतकुंभा तथा जलालाबाद नगर बसे
खेड़ी से पहले यहां पर म्याना, कोटा, सतकुंभा तथा जलालाबाद नगर बसे और उजड़े, सतकुंभा तीर्थ मंदिर में लगे पत्थर से स्तंभ गुर्जर प्रतिहार कालीन हैं। यहां 16 स्तंभ खुदाई से प्राप्त हुए थे। खेड़ी गुज्जर, बिलंदपुर, अहीर माजरा तथा पड़ोसी गांव खिजरपुर अहीर माजरा में लखौरी र्इंटे लगी हैं जो यहां से खोदकर निकाली गई हैं। इन ईंटो पर कलात्मक उभार हैं। लोगों का कहना है कि यहां की ईंट यदि नयाबांस में लगा दे तो नुकसान होता है।
चकवा बैन चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता की राजधानी रही
किवंदती के अनुसार भारत में चकवा बैन न्यायप्रिय एवं चक्रवर्ती सम्राट हुए, इनमें गैर जाट वंशीय राजा मान्धाता की राजधानी यमुना नदी के किनारे इसी स्थान पर थी, पहले यमुना यही होकर बहती थी। राजा मान्धाता राजकोष से कुछ भी न लेकर अपने परिवार का खर्च रस्सी बांट उनकी बिक्री करके चलाते थे। उनकी रानी बिन्दुमति अपने सतकर्मो के कारण कच्चे सूत के धागे से मिट्टी के बगैर पक्के मटके से पानी भर कर लाती थी। राजा की दुहाई सहायतार्थ पुकार दे देता था तो उसे तुरंत न्याय मिलता था।
रानी मंदोदरी के साथ रावण भी आए थे यहां
पौराणिक वर्णन के अनुसार लंका का राजा रावण जब सम्राट मान्धाता से मिलने आए तो रावण की रानी मंदोदरी उनके साथ थी। रावण के वापस चले जाने पर रानी बिन्दुमती ने कहा कि मंदोदरी जिस तरह से स्वर्ण आभूषणों से लदी हुई थी मुझे भी उतने ही आभूषण बनवा कर दो। राजा ने असमर्थता जताई तो राजा का राजकोष पर अपना अधिकार बताते हुए वहां से धन लेने और आभूषण बनवाने की बात कही। ऐसा न होने पर वह मरण व्रत धारण कर लेगी।
त्रिया हठ के सामने हार गए थे सम्राट मान्धाता
राजा मान्धाता ने त्रियाहठ के सामने हार मानकर राजकोष के धन से आभूषण बनवा दिए। उन्हें कई रात तक नींद नहीं आई। राज वैध राजपुरोहितो से विमर्श के बाद बात सामने आई कि राजकोष का धन प्रयोग किए जाने के कारण तप में कमी आ गई है। इसे लिए यज्ञ हो यह यज्ञ भी वहीं सिद्ध पुरुष करे जिसने 12 वर्ष तक अन्न ग्रहण न किया हो तथा उसे यज्ञ दक्षिणा के रुप में सवा मन सोना व एक हजार गाय दी जाएं।
चुणकट ऋषि ने जब यज्ञ करने से किया इंकार
चुलकाणा में उन दिनों चुणकट ऋषि तपष्या करते थे। वे घास की बनी एक टिकिया खाते थे। उनसे यज्ञ के लिए प्रार्थना की गई। चुणकट ऋषि ने यह कहकर यज्ञ करने से इंकार कर दिया कि वह राजअंश स्वीकार नहीं करते। राजा को यह सुनकार गुस्सा आ गया। उन्होंने तीन शर्तें रख दी जिसमें राजअंश ग्रहण करना स्वीकार नहीं तो राज्य छोडऩे नहीं तो मान्धाता से लड़ाई करने की। चुणकट ऋषि ने राज्य क्षेत्र छोडऩे की बात स्वीकार कर ली और चले पड़े। कई दिनों तक लगातार चलने के बाद उन्हें चकवा बैन मान्धाता का ही राज्य मिला तो चुणकट ऋषि ने तीन कुशां (शक्तियां) तैयार की तथा वापस चुलकाणा आकर राजा मान्धाता को लड़ाई को संदेश भेज दिया।
चुणकट ऋषि की शक्तियां चली तो राजधानी रसातल में गई
पहली कुशा शक्ति को छोड़ा तो राजा की सारी सेना समाप्त हो गई। दूसरी कुशा से राजधानी म्याना कोटा को रसातल में पहुंचा दिया। ऋषि ने राजा को मारने के लिए जब तीसरी शक्ति का प्रयोग करने पर विचार किया तो राजा ने क्षमा याचना की और माफी मिलने पर अन्यत्र स्थान पर चला गया। ऐसा माना जाता है राजा मान्धाता के पतन बाद यह स्थान निर्जीव रहा रहा यहां 7 ऋषियों ने तप किया। गुर्जर प्रतिहार काल 8वी से 10वीं सदी में यहां सुन्दर भवनों व मंदिरों को निर्माण किया गया। जहां ऋषियों ने तप उस जगह के तालाब को सप्तऋषि तपस्थली सतकुंभा के रुप में पहचान मिली।
68 तीर्थों में शामिल है, सतकुंभा पर दो बार मेला लगता है
सतकुंभा तीर्थ में बने मंदिर के पीछे लगभग 45 फीट गहरी कुंआ नुमा सुरंग है। मंदिर के उत्तर पश्चिम में खोदे गए गहरे गड्ढे को देखने तीन अलग-अलग आकार की ईंटो से बनी ऊपर नीचे करीब 3 मीटर तक चौड़ाई की दीवारों की सतहों से अनुमान लगा जाता है यह खेड़ा कई उजड़ा और बसा होगा। लगभग 30 साल पहले प्राचीन तालाब की घाट पोडिय़ां तथा बुर्जियों बनाई गई हैं। इस तालाब का पानी कभी सूखता नहीं न ही गंदा होता सरकार की ओर सतकुंभा तीर्थ पर कुंड बनाया गया। कार्तिक पूर्णिमा व श्रावण के अंतिम रविवार को यहां मेले लगते हैं। प्रत्येक रविवार और अमावस व पूर्णमासी को श्रद्धालु सतकुंभा में स्नान करने आते हैं। अपने कार्य सिद्ध करने की कामना करते हैं।
धाम के पीठाधीश्वर महंत राजेश स्वरूप महाराज
सोनीपत शहर से 24 किलोमीटर दूरी पर स्थित सिद्धपीठ तीर्थ सतकुंभा धाम के वर्तमान में पीठाधीश्वर महंत राजेश स्वरूप महाराज व धाम के प्रबंधक सूरज शास्त्री सहित अनेकों गांव के श्रद्धालुओं के द्वारा धाम की प्रगति व विकास के लिए कार्य किया जा रहा है।