घर जीवन, बाहर मरण, लॉक डाऊन है समझ।
लाभ-हानि के क्रय-विक्रय धरे रह जायेगे तू समझ।।
माटी की देह है, माटी का बिछौना!
मरकज में बैठ कर मत बना धर्म का खिलौना!
मानवता सबसे बडा धर्म, सन्तों की है यह वाणी
विपत्ति में होती सबकी पहचान, सच्ची यही कहानी।
कोरोना तो बहाना है, सबको इक दिन जाना है
धर्म कर्म की पतवार थाम, यही साथ जाना है।।
राष्ट्रहित रख सर्वोपरि, राष्ट्र की पताका लहराना है मातृभूमि का धर्म यही, अरे मोदी तो बहाना है।।
जि़न्दगी में अवसर मिला, अपना तू फर्ज निभा लें, घर में अपने बैठकर, अपनेपन की रीत निभा लें।।
माना, कोरोना महामारी अमावस की रात है गहरी
आकाश, शीतल की छाव मिलेगी, अब है जो दोपहरी।।
लेखक : नरेश कुमार आकाश
कला अध्यापक, नीलकण्ठ निवास -1713
सेक्टर -23, सोनीपत