कलश यात्रा के साथ सतकुंभा उत्सव आरंभ, यज्ञ के 5 कुंड बने, महारुद्र यज्ञ में दो लाख 18000 से अधिक आहुतियां दी जाएंगी, हरिद्वार से आए 11 वेदपाठी वेद की ऋचाओं से कर रहे हैं महारुद्र यज्ञ
रणबीर सिंह रोहिल्ला, सोनीपत। सिद्धपीठ तीर्थ सतकुंभा धाम शनिवार से सात दिवसीय सतकुंभा उत्सव आरंभ हो गया है। पीठाधीश्वर महंत राजेश स्वरुप महाराज के सानिंध्य में सबसे पहले कलश पूजन हुआ। इसके उपरांत कलश यात्रा निकाली और यज्ञशाला में कलश स्थापित किए गए। आचार्य दीपक के नेतृत्व में सात दिवसीय रुद्र महायज्ञ के लिए अग्नि प्रज्जवलित की गई। पीठाधीश्वर महंत राजेश स्वरूप महाराज ने कहा कि जिस अमृत कलश की पूजा की, दिव्य शक्तियों का आह्वान किया गया। यह यज्ञ भगवान शंकर की आराधना करने के लिए किया जा रहा है। भगवान शंकर की पूजा के लिए दो विधि अभिषेकात्मक और यज्ञात्मक हैं। महारुद्र यज्ञ में दोनों ही विधि से भगवान शंकर की आराधना की जा रही है। महारुद्र यज्ञ में दो लाख 18000 से अधिक आहुतियां दी जाएंगी। इस धर्म अनुष्ठान को आरंभ कलश पूजा के साथ किया गया, यज्ञ के 5 कुंड बने हैं, अग्नि प्रज्जवलित की गई है, अग्नि पूजा के साथ ही शनिवार को सतकुंभा उत्सव आरंभ हो गया है। सतकुंभा उत्सव के पहले दिन 251 महिलाओं ने कलश लेकर परिक्रमा की। यह भारत देश के समस्त मानव जगत का उत्सव है। उत्सव के मौके पर हरियाणा सरकार के उपमुख्यमंत्री चौधरी दुष्यंत चौटाला ने अपना संदेश भेजा है और सतकुंभा उत्सव में आने वाले श्रद्धालुओं के उज्जवल भविष्य और उनके जीवन में सफलता की कामना की है। महाराज राजेश स्वरुप ने कहा कि समुद्र मंथन से निकले अमृत को पीने वाले अमर हो जाते हैं। वैदिक परंपराओं को भारतीय ऋषि मुनियों ने जो पूजा अर्चना मानव जीवन को खुशहाल बनाने के लिए की। इसी परंपरा को मिलकर आगे बढ़ाने के लिए हम प्रयासरत हैं। सप्त ऋषियों की धारा, जहां पर भगवान शिव की कृपा से भारत के 68 तीर्थ में शामिल सतकुंभा धाम जो सिद्धपीठ के रूप में प्रगट है। महायज्ञ में आचार्य दीपक कौशिक के नेतृत्व में आचार्य राजेंद्र भट्ट, किरनपाल शर्मा, रमेश शास्त्री आदि 11 वेदपाठी वेद की ऋचाओं से महारुद्र यज्ञ कर रहे हैं। हरियाणा कला परिषद कुरुक्षेत्र के कलाकारों ने पंडित लख्मीचंद के सांग की प्रस्तुति दी। गांव बिलंदपुर की ओर से सतकुंभा उत्सव में अनंत भंडारे की सेवा की गई है। शिवानी भारद्वाज ने कहा कि समय के साथ जो बदलाव होते हैं, उनको स्वीकारना होता है, यह परिवर्तन प्रकृति का नियम है। उत्सव में प्रबंधक सूरज शास्त्री ने व्यवस्था संभाली तो पवन शास्त्री ने कलश यात्रा की व्यवस्था को संभाला। इस मौके पर काफी संख्या में आसपास सहित दूर दराज से आए श्रद्धालु ने धार्मिक उत्सव में बढ़ चढक़र भाग लिया।