गुरु तेग बहादुर को समर्पित है बढख़ालसा स्मारक है आस्था का बड़ा केंद्र
>रणबीर सिंह रोहिल्ला, सोनीपत। इस्लाम कबूल न करने पर जालिम औरंगजेब ने भाई सती दास, भाई मतीदास और भाई दयाला को शहीद कर दिया। 22 नवंबर को औरंगजेब ने गुरु तेगबहादुर का भी शीश कटवा दिया और उनके पवित्र पार्थिव शरीर की बेअदबी करने के लिए शरीर के चार टुकड़े कर के उसे दिल्ली के चारों बाहरी गेटों पर लटकाने का आदेश दे दिया। लेकिन उसी समय अचानक आये अंधड़ का लाभ उठाकर एक स्थानीय व्यापारी लख्खीशाह गुरु जी का धड़ और भाई जैता जी गुरु जी का शीश उठाकर ले जाने में कामयाब हो गए. लख्खीशाह ने गुरु जी के धड़ को अपने घर में रखकर अपने घर को आग लगा दी और इस प्रकार समझदारी और त्याग से गुरु जी के शरीर की बेअदवी होने से बचा लिया। इधर भाई जैता जी ने गुरूजी का शीश उठा लिया और उसे कपडे में लपेटकर अपने कुछ साथियों के साथ आनंदपुर को चल पड़े। औरंगजेब ने उनके पीछे अपनी सेना लगा दी और आदेश दिया कि किसी भी तरह से गुरु जी का शीश वापस दिल्ली लेकर आओ। भाई जैता जी किसी तरह बचते बचाते सोनीपत के पास बढख़ालसा गाँव में पहुंचे गए। मुगल सेना भी उनके पीछे लगी हुई थी। वहां के स्थानीय निवाशियों को जब पता चला कि – गुरु जी ने बलिदान दे दिया है और उनका शीश लेकर उनके शिष्य उनके गाँव में आये हुए हैं तो सभी गाँव वालों ने उनका स्वागत किया और शीश के दर्शन किये। दादा कुशाल सिंह दहिया को जब पता चला तो वे भी वहां पहुंचे और गुरु जी के शीश के दर्शन किये। मुगलो की सेना भी गांव के पास पहुंची तो गांव के लोग इक_ा हुए और सोचने लगे कि क्या किया जाए। मुग़ल सैनिको की संख्या और उनके हथियारों को देखते हुए गाँव वालों द्वारा मुकाबला करना भी आसान नहीं था। सबको लग रहा था कि- मुगल सैनिक गुरु जी के शीश को आनन्दपुर साहिब तक नहीं पहुंचने देंगे, अब क्या किया जाए ? तब दादा कुशाल सिंह दहिया ने आगे बढक़र कहा कि – सैनिको से बचने का केवल एक ही रास्ता है कि – गुरुजी का शीश मुग़ल सैनिको को सौंप दिया जाए। इस पर एक बार तो सभी लोग गुस्से से दादा को देखने लगे। लेकिन दादा ने आगे कहा – आप लोग ध्यान से देखिये गुरु जी का शीश, मेंरे चेहरे से कितना मिलता जुलता है। अगर आप लोग मेरा शीश काट कर, उसे गुरु तेगबहादुर जी का शीश कहकर, मुग़ल सैनिको को सौंप देंगे तो ये मुगल सैनिक शीश को लेकर वापस लौट जायेंगे तब गुरु जी का शीश बड़े आराम से आनंदपुर साहब पहुँच जाएगा और उनका सम्मान के साथ अंतिम संस्कार हो जाएगा। उनकी इस बात से चारों तरफ सन्नाटा फैल गया। सबलोग हैरान रह गए कि – कैसे कोई अपना शीश काटकर दे सकता है ? पर वीर कुशाल सिंह फैसला कर चुके थे, उन्होंने सबको समझाया कि – गुरु तेग बहादुर को हिन्द की चादर कहा जाता हैं, उनके सम्मान को बचाना हिन्द का सम्मान बचाना है. इसके अलावा कोई चारा नहीं है। फिर दादा कुशाल सिंह ने अपना सिर कटवाकर गुरु शिष्यो को दे दिया। जब मुगल सैनिक गाँव में पहुंचे तो सिक्ख दोनों शीश को लेकर वहां से निकल गए भाई जैता जी गुरु जी का शीश लेकर तेजी से आगे निकल गए औए जिनके पास दादा कुशाल सिंह दहिया का शीश था, वे जानबूझकर कुछ धीमे हो गए, मुग़ल सैनिको ने उनसे वह शीश छीन लिया और उसे गुरु तेग बहादुर जी का शीश समझकर दिल्ली लौट गए। इस तरह धर्म की खातिर बलिदान देने की भारतीय परम्परा में एक और अनोखी गाथा जुड़ गई। हरियाणा की वर्तमान मुक्चयमंत्री मनोहर लाल जी ने अब उस स्थान पर बने एक म्यूजियम में महाबलिदानी दादा कुशाल सिंह दहिया (कुशाली) की प्रतिमा को स्थापित किया है। यह स्थान सोनीपत जिले में बढख़ालसा नामक स्थान पर है। सभी धर्मप्रेमियों को वहां दर्शन के लिए जाना चाहिए।